फिल्म पीकू की कहानी एक बाप बेटी के रिश्ते की कहानी है। पीकू यानी दीपिका पादुकोण तीस साल की कामकाजी औरत है। भास्कर बनर्जी यानी अमिताभ बच्चन उनके बुजुर्ग पिता हैं। भास्कर और पीकू एक साथ रहते हैं। भास्कर बनर्जी को पेट की शिकायत है। कब्ज से जूझता यह बूढ़ा अपनी बेटी पर पूरी तरह से निर्भर है। यही कारण है कि वह नहीं चाहता कि पीकू की शादी हो। बूढ़े पिता का मानना है कि बिना उद्देश्य के लड़की को शादी नहीं करनी चाहिए। अगर पति की सेवा और रात को संबंध बनाने के लिए ही शादी करनी है तब तो बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए।
भास्कर बनर्जी एक जिद्दी और सिर चढ़े बूढ़े हैं। इस बूढ़े की सबसे बड़ी चिंता है, उसके पेट का कब्ज। सू-सू, टट्टी का विश्लेषण और चर्चा करता हुआ यह बूढ़ा कई बार आपको अपने पिता या दादा की याद दिलाएगा। इस विस्तृत चर्चा से उसकी बेटी और बाप में कई बार तगड़ी नोक-झोंक होती है। इस बीच आते हैं, राणा चैधरी यानी इरफान खान । राणा पीकू को पसंद करता है। मगर उसके बाप के कब्ज की चर्चा उसे उबाती है।
फिल्म की कई परतों में छिपे हैं कई मुद्दे। जैसे बाप का बेटी की शादी को लेकर नजरिया महिलावाद के लिए एक नई बहस छेड़ता है, तो बाप का इतना स्वार्थी होना खलता भी है। शादी के बाद पिता को न छोड़ेने की जिद पीकू को एक मजबूत औरत के रूप में स्थापित करती है। कुल मिलाकर यह फिल्म पारिवारिक है। मगर कई बार पेट की कब्जियत की इतनी व्यापक चर्चा यह सोचने को मजबूर करती है कि कहीं अब बेड रूम के बेहद निजी पलों को दर्शकों तक पहुंचाते-पहुंचाते निर्देशकों की नजर शौचालय के दृश्यों पर तो नहीं है।
फिल्मी दुनिया – टट्टी, सू-सू और पीकू
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