इलाहाबाद। लगातार तीसरे साल इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मूर्ति विसर्जन पर लगी रोक को ढील देते हुए नवरात्रों के बाद विसर्जन की अनुमति दे दी है। 22 सितम्बर को अपने फैसले में कोर्ट ने यह ज़रूर कहा कि शासन और प्रशासन को ध्यान देना चाहिए कि विसर्जन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 2010 में तय किए गए नियमों के अनुसार होना चाहिए।
2012 और 2013 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गंगा और यमुना नदियों में विसर्जन पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी। दोनों नदियों में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए यह ज़रूरी कदम बताया गया था। पर दोनों साल राज्य सरकार ने इस फैसले को पलटवा दिया। सरकार का कहना था कि ऐसे फैसले से कानूनी व्यवस्था में समस्या आ सकती है। इस साल भी ऐसा ही कुछ हुआ।
कोर्ट ने नदी से लगे इक्कीस जिलों में नियमानुसार विसर्जन के लिए सरकार से खास प्लान तैयार करने को कहा और इसकी रिपोर्ट भी मांगी हैै। कोर्ट ने यह भी कहा कि पिछले साल राज्य सरकार ने विश्वास दिलाया था कि विसर्जन पर लगी रोक का मान किया जाएगा और त्योहारों के पहले से तैयारी की जाएगी पर इसके लिए ना तो बजट पास किया गया और पहली बैठक भी सिर्फ अगस्त में गणेश चतुर्थी के कुछ ही दिन पहले हुई।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दिए कुछ दिशा निर्देश
– मूर्ति में हानिकारक केमिकल वाले पेन्ट का इस्तेमाल ना हुआ हो
– विसर्जन के पहले आभूषण और अन्य पूजा का सामान हटा दें
– प्लास्टिक से बना सामान नदी में ना डालें
– जो भी कूड़ा बचे उसे विसर्जन के अड़तालिस घंटों बाद तक नदी किनारे से हटा दें