सिनेमा जगत के प्रसिद्ध कलाकार प्राण को बहुत महत्वपूर्ण पुरस्कार दादा साहब फाल्के से 3 मई को सम्मानित किया जाएगा। तिरान्वे साल के प्राण ने साठ साल से भी ज्यादा समय फिल्मों को दिया है। यह जानना भी बड़ा मजेदार है कि खलनायक के रूप में अपनी पहचान बनानें वाले प्राण ने अपने फिल्मी जीवन का सफर एक नायक के रूप में शुरू किया था। इनकी पहली फिल्म यमला जट पाकिस्तानी थी।
एक समय था जब दिलीप कुमार, देवानंद और राजकपूर की तिकड़ी पूरे देश में अपनी जगह बना चुकी थी। हर सफल फिल्म में यही तीनों नायक मुख्य भूमिका में नजर आते थे। लेकिन खलनायक के तौर पर इन तीनों के साथ अलग-अलग सफल जोड़ी बनानें में प्राण कामयाब हुए। प्राण ने लोगों को डराया, रुलाया तो हंसाया भी। साल 1974 में आई इनकी फिल्म कसौटी के गानें ‘हम बोलेगा तो बोलेगा की बोलता है’ ने लोगों को खूब हंसाया। तो 1973 में आई फिल्म ज़ंजीर में इन पर आज़माया गया गाना ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी’ से इनकी छवि एक बेहतर दोस्त की बनीं। आखिर में 1950 के दषक में बनी फिल्म शीष महल का यह डायलॉग ‘मैं भी पुराना चिड़ी मार हूं पर कतरना अच्छी तरह से जानता हूं’ भला कैसे भूल सकते हैं।
प्राण को सम्मान
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