कभी आप चिल्लाएं और कोई सुन न पाए। आप चलना चाहें और उड़ना षुरू कर दें। सुनने में रोमांचक और थोड़ा अजीब लगता है ना, मगर पृथ्वी यानी जहां हम सब लोग रहते हैं, वहां से 350 किलोमीटर की दूरी पर ऐसा ही होता है। इसे अंतरिक्ष कहते हैं। अंतरिक्ष को समझने के लिए पृथ्वी के पर्यावरण को समझना पडेगा।
पृथ्वी को सुरक्षा देता पर्यावरण
यह 5 परतों से बना होता है। पहली परत पृथ्वी से 11 किलोमीटर ऊंचाई पर होती है। गैस के रूप में पानी यानी वाष्प इसी स्तर में होती है। बरसात का कम या ज्यादा होना इसी स्तर पर निर्भर करता है। पृथ्वी से 50 किलोमीटर की दूरी पर दूसरी परत होती है। सूर्य से आने वाली नुकसानदायक किरणों का अधिकतर हिस्सा यहीं पर रोक लिया जाता है। पृथ्वी से 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर तीसरी परत होती है। सूर्य की रोषनी और गैसों के टकराने से 80 किलोमीटर से पृथ्वी से 110 किलोमीटर के बीच का हिस्सा चैथी परत बनाता है।
पृथ्वी से 110 किलोमीटर की दूरी से शुरू हो जाता है अंतरिक्ष वाला क्षेत्र। जिस पर्यावरण प्रदूषण को लेकर पूरी दुनिया चिंता में है। वो इन्हीं परतों के नुकसान पहुंचने को लेकर है। कंपनियों, वाहनों से निकलने वाले धुएं और सिगरेट, बीड़ी से निकलने वाला धुआं इन्हीं परतों को नुकसान पहुंचा रहा है। अब सोचो अगर एक परत में छेद हो जाए तो क्या होगा? सूरज की किरणें अगर सीधी पहुंचने लगें तो हमें बिल्कुल वैसा ही लगेगा जैसा आग के बीच खड़ा होकर लगता है।
अंतरिक्ष से दी जानकारी
अंतरिक्ष से वहां के वातावरण के बारे 25 जून को जानकारी दी चीन की दूसरी महिला अंतरिक्ष यात्री वॉग यापिंग ने। यापिंग ने बताया कि आवाज एक से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचे इसके लिए एक माध्यम की जरूरत होती है। लेकिन अंतरिक्ष में तो कोई माध्यम होता नहीं। माध्यम यानी हवा। इसी वजह से अंतरिक्ष में कुछ सुनाई नहीं देता। कभी सोचा है कि आप खड़े कैसे रहते हैं? इसका कारण एक बल है जो हमें जमीन की तरफ खींचता है। इसे गुरुत्वाकर्शण बल कहते हैं। अंतरिक्ष में न केवल व्यक्ति बल्कि सभी चीजें उड़ती रहती हैं।