जिला वाराणसी, ब्लाक चिरईगावं, चोलापुर, गावं शंकरपुर, चांदपुर, धरसौना, जगदीषपुर। शंकरपुर, चाँदपुर गावं में बारिष ना होवे से 150 बिघा धान के खेती सूखत हव। इहां खेत में बेहन सूख जात हव। ओकर रोपाई पानी बिना नाहीं हो पावत हव।
इहां खेती करे वाली रामा, नगीना, कान्ती, शान्ती, चम्पा समेत कई लोग बतइलीन कि हमने के धान के खेती बारिष पर निर्भर रहला। जेकरे पास पानी के सुविधा हव उ धान के रोपाई कर पावला जेके खाली बारिष के आसरा रहला ओकर त खेती सूखल जात हव।
एही हाल धरसौना आउर जगदीषपुर के भी हव। इहां के मन्जू, सोनी, आकाष, फौजदार के कहब हव कि कोई के दस बीघा त कोई के पन्द्रह बीघा धान के खेती सूखल जात हव। धान में त बहुत पानी लगला। अगर बिजली रही त पम्पिंगसेट से सिंचाई करे के पचास रूपिया घण्टा लगला। केकरे पास एतना पइसा हव। एतना मंहगा पानी से खेती कर पाई। एदा पारी त लगत हव कि धान के उपज बहुत कम हो पाई।
सिंचाई विभाग के सहायक अभियन्ता राम अचल सिंह के कहब हव कि सिंचाई करे खातिर ट्यूबवेल के व्यवस्था रहला। अगर ट्यूबवेल में कुछ खराबी हव त ओके बनवावे के जिम्मेदारी हमार हव। बिजली सम्बन्धित कउनों खराबी हव त उ बिजली विभाग के जिम्मेदारी हव। एकरे अलावा आउर कउनों सुविधा सिंचाई खातिर नाहीं हव।
काशी हिन्दू विश्वविध्यालय के रजिस्ट्रार जी. एस. यादव बनारस के जमीन के जल स्तर के सालों गहराई से देखलन। आउर उनकर कहब हव की पानी बचावे से ही हमने बारिश के पानी के बहमूल्य इस्तेमाल कर सकीला। पानी बचावे खातिर के –
1. पम्पिंग सेट के जगह फव्वारा इस्तेमाल करें के चाही। एसे सौ गुना आउर पानी के बचाव होला। आउर कम पानी में अधिक सिचाई हो पावला। पम्पिंग सेट से जब खेत में पानी भर जाला त उमे से आधा पानी भाप बन के उड़ जाला।
2. मेड़ बनाके के पानी के रोक के रखे के चाही। कभी भी पानी के बहे ना देवे के चाही।
3. जब बारिश के पानी छत में रुक जाला त ओके नाली से ज़मीन में डाले के कोशिश करे के चाही। इ काम के वर्षा जल संचयन कहल जाला।
पानी बिना धान के खेती
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