महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से 400 किलोमीटर पूर्व में बसे लातूर में रहने वाले लगभग पांच लाख लोग पिछले कई वर्षों से कम बारिश की मार और पानी के संकट से जूझते आ रहे हैं। महाराष्ट्र के सूखा-प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के हिस्से लातूर से हाल ही में हजारों लोग, जिनमें ज्यादातर गरीब किसान थे, पानी की कमी के चलते पलायन कर चुके हैं।
पिछले साल भी इस क्षेत्र में पानी की किल्लत की वजह से फसल के बर्बाद हो जाने तथा कर्ज नहीं चुका पाने के चलते लगभग 1400 किसानों ने खुदकुशी कर ली थी।
माना जा रहा है कि हालात अभी और ज्यादा खराब होंगे, क्योंकि मानसून आने के कई महीने पहले से ही यहां के लगभग सभी जलाशय सूख चुके हैं।
हाल ही में कुछ असामाजिक तत्वों ने पानी भरने की जगह से ही टैंकरों को लूट लिया था। हालात पर काबू पाने के लिए लातूर जिले के कलेक्टर पांडुरंग पॉल ने 31 मई, 2016 तक धारा 144 का सहारा लिया है।
यही नहीं, कई बार कुओं के पास लगी भीड़ की वजह से टैंकरों में पानी भरने की दिक्कतें सामने आती हैं। लातूर नगर निगम इलाके में 70 और ग्रामीण इलाकों में 200 पानी टैंकर रोजाना सात चक्कर लगा रहे हैं। फिर भी पांच लाख की आबादी के लिए पानी की जरूरी आपूर्ति की शिकायत बनी हुई है। इसके पहले महीने में एक बार नलों में पानी आ भी जाता था। लेकिन अब उसकी भी उम्मीद नहीं रही। लिहाजा 13 वॉटर स्टोरेज टैंकों पर भीड़ उमड़ने लगी और कानून व्यवस्था की स्थिति चरमराने लगी।
एक अनुमान के अनुसार, अब तक 20 से 25 प्रतिशत लोग लातूर छोड़कर जा चुके हैं। लातूर और मराठवाड़ा बड़े नेताओं का इलाका रह चुका है, जो राज्य में बड़े पदों पर रहे हैं। फिर भी यहां इस तरह के हालात बने हुए हैं। दरअसल, नेताओं में दूरदर्शिता की कमी के कारण यह हालात बने है। 10 साल तक लगातार मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के बाद भी जनता के लिए कुछ नहीं किया।
लातूर के जलसंकट पर शोध कर चुके अतुल देउलगांवकर का कहना है, ‘जलसंकट की अहम वजह है 4 साल से बारिश का कम होना। लेकिन इसके पीछे अन्य कारण भी हैं। लातूर शहर को मांजरा डैम से पानी मिलता रहा है. यह 55 किलोमीटर दूर है और अब सूख चुका है।‘
इसके बावजूद 80 फीसदी तक पाइप लीकेज की आशंका है, कई स्थानों पर नल नहीं लगाए गए हैं, इसका भी बुरा असर हुआ है। मांजरा से पानी लाने के लिए महानगरपालिका को 15 लाख रुपये प्रति महीना बिजली का बिल देना पड़ता था जो महानगरपालिका के लिए आसान नहीं था।
अब नई जल योजना के तहत पानी उजनी डैम से लाने की बात चल रही है जो 163 किलोमीटर दूर है।
लातूर को महाराष्ट्र का एजुकेशनल हब भी कहा जाता है। यहां पर बाहर से बड़ी संख्या में छात्र आकर पढ़ाई करते हैं। जिला प्रशासन ने जिले के स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटर को भी डेढ़ महीने के लिए बंद रखने की अपील की है। प्रशासन ने ऐसा कदम इसलिए उठाया है ताकि पानी बचाया जा सके।
अतुल देउलगावकर बताते हैं कि दरअसल जब तक पानी को सिंगापुर और यूरोप की तरह सहेज कर दौबारा से इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, तब तक ये समस्या हल नहीं हो सकेगी। वाष्पीकरण की गति और पानी की बढ़ती मांग को देखते हुए मई के बाद हालात और बदतर हो सकते हैं। अनुमान है कि यदि इस बार भी मानसून ठीक नहीं रहा तो, आधा लातूर खाली हो जाएगा।
पानी को तरसा लातूर
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