पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू अल्पसंख्यकों को मानवाधिकार पर बनी ‘सीनेट फंक्शनल कमेटी’ ने बहु-प्रतीक्षित हिंदू विवाह अधिनियम को अपनी अंतिम स्वीकृति दे दी है। अब इस पर पाकिस्तान में हिंदू विवाह पर कानून बन जाएगा। इससे पहले सितंबर 2016 में ‘नेशनल असेंबली’ (उच्च सदन) ने पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के लिए हिंदू मैरिज बिल-2016 को पारित कर दिया था और अब पाकिस्तान आबादी का 2 फीसदी हिस्सा बेहतर जीवन जी सकता है। इसके अलावा तलाक और जबरन धर्म परिवर्तन जैसे मामलों का समाधान भी अब आसानी से निकाला जा सकता है, ताकि हिंदू पाक में खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। इस बिल का उल्लंघन करने पर जुर्माने का भी प्रावधान है।
इस बिल के स्वीकृत होने के बाद पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू लोगों को दूसरी शादी करने की इजाजत भी मिल सकेगी। इस याचिका के अनुसार, पाक हिंदू विवाह अधिनियम के मुताबिक शादी के 15 दिनों के भीतर इसका रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा।
यदि पति-पत्नी एक साल या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं और साथ रहना नहीं चाहते हैं, तो तलाक ले सकते हैं। पति की मृत्यु के छह महीने के बाद महिला को दोबारा शादी करने का पूरा अधिकार होगा। अगर कोई हिंदू व्यक्ति अपनी पहली पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह करता है तो इसे दंडनीय अपराध माना जाएगा। बिल का उल्लंघन करने पर छह माह की सजा और पांच हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
अब तक यहां हिंदू समुदाय की महिलाओं को अपना विवाह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं मिलता था। इससे उन्हें न्याय पाने में काफी परेशानी आती थी। यह समुदाय पुनर्विवाह, संतान गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे कानूनी अधिकारों से भी वंचित था। नए कानून के बाद अब पाकिस्तान में हिंदू महिलाओं के अपहरण की घटनाओं पर भी लगाम लगने की उम्मीद है।