पहाड़ों की खुदाई का काम जोखिम भरा है। यहां बड़ों से लेकर बच्चे तक काम करते हैं। मजदूरों की मौत आम बात है। काम की परिस्थितियों पर तो कई सवाल हैं। लेकिन मौत होने या जख्मी होेने पर मुआवजे के लिए इन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है। उस पर भी मुआवजा मिल ही जाएगा, यह तय नहीं है। सवाल उठता है कि ठेके सरकारी हैं तो फिर निगरानी कौन करेगा?
चित्रकूट। जिले के कई कस्बों में पहाड़ खुदाई का काम चलता है। यहीं पर एक कस्बा है, भारतकूप। यहां पिछले दो महीनों में पहाड़ पर काम करने वाले तीन लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन किसी को मुआवज़ा नहीं मिला है।
ब्लाक कर्वी, गांव गोंड़ा। यहां की आएशा ने बताया कि मेरा पति साबिर खां 30 दिसंबर 2014 को सुबह छह बजे डंपर लेकर भौरा पहाड़ गया था। उसके साथ खैरा गांव का बुद्धराज भी था।
इस पहाड़ का ठेका लाखन सिंह के पास है। भौरा पहाड़ खुदाई होने के कारण गहरा हो गया था। मेरे पति साबिर खां और बुद्धराज जब सौ फुट की खदान में उतरकर पत्थर लेने गए थे, तभी खदान धंस गई और मेरे पति और बुद्धराज दोनों मर गए। हमने ठेकेदार से मुआवजे़ की मांग की। लेकिन तीन महीने पूरे होने वाले हैं, अब तक हमें न तो मुआवज़ा मिला न ही मुआवज़ा मिलने का कोई भरोसा मिला। खबर लहरिया के पत्रकारों ने लाखन सिंह से बात करने की कोशिश कई बार की मगर बात नहीं हो पाई। भरतकूप चैकी के प्रभारी आर.बी.सिंह ने बताया कि लाखन सिंह के खिलाफ मुकदमा चल रहा है। परिवार को चाहिए कि न्यायालय से कागज निकलवाकर मुआवजे़ की रकम का दावा करें।
कर्वी, गांव रौली कल्याणपुर। यहां की रहने वाली कुसमा ने बताया कि 21 फरवरी को उसका तेरह साल का लड़का दिलीप बजनी नाम के पहाड़ में ब्लास्टिंग होने से मौके पर ही मर गया। बजनी पहाड़ का ठेका इन्द्रप्रसाद के पास है। कुसमा ने बताया कि इस खदान में मेरा देवर मोती काम करता था। मेरा लड़का उसे खाना देने गया था। लेकिन जब वह खाना देकर आकर आ रहा था तभी पहाड़ में ब्लास्ट हो गया और वह वहीं मर गया।
खदान मालिक ने अभी तक कोई मुआवज़ा नहीं दिया है। वह हमसे समझौता करने के लिए कह रहा है। हम पांच लाख रुपए मुआवजा मांग रहे हंै लेकिन वह देने को तैयार नहीं है। खदान मालिक इन्द्रपाल से इस बारे में पूछताछ करने की बहुत कोशिश हुई लेकिन वह घर पर कभी नहीं मिलता।
खनिज अधिकारी प्रदीप कुमार सिंह ने बताया कि सरकार तो ठेकेदारों को ठेका दे देती है। किसी भी तरह की दुर्घटना होने पर मुआवजा खदान मालिक ही देते हैं। अगर खदान मालिक के खिलाफ मुकदमा लगा है तो न्यायालय तय करेगा कि खदान मालिक को कितना मुआवजा देना होगा। ज्यादातर परिवार वाले न्यायालय से बाहर ही समझौता कर लेते हैं। मुआवजे की रकम दोनों पक्षों के बीच ही तय होती है। मौत होने पर अक्सर मुआवजे की राशि दो या ढाई लाख होती है।