देश भर में 29.9 करोड़ मवेशियों के चरने के लिए भूमि नहीं बची है. यही हाल रहा तो संभवत: चार सालों में हमें दूध का आयात करना पड़ सकता है।
सरकार के अनुमान के अनुसार, बढ़ती आय, बढ़ती जनसंख्या और बदलते खान-पान की पसंद को बढ़ावा मिलने से वर्ष 2021-22 तक दूध और दूध के उत्पादों की मांग कम से कम 21 करोड़ टन तक बढ़ेगी। यानी पांच वर्षों में 36% का इजाफा होगा।
भारत में आजीविका की स्थिति के लिए तैयार स्टेट ऑफ इंडियाज लाइव्लीहुड रिपोर्ट के अनुसार, इस मांग को पूरा करने के लिए, प्रति वर्ष उत्पादन में 5.5% की वृद्धि होनी चाहिए। वर्ष 2014-15 और 2015-16 में, दूध उत्पादन में 6.2% और 6.3% की वृद्धि हुई है।
सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत को वर्ष 2020 तक 1,764 लाख टन चारा उत्पन्न करने की आवश्यकता होगी। लेकिन मौजूदा स्रोत केवल 90 करोड़ टन चारे का उत्पादन करने में सक्षम हैं, यानी 49% की कमी है। बेंगलुरु स्थित आईआईएम, की रिपोर्ट के अनुसार, निजी उपभोग के लिए मांग वर्ष 1998-2005 में प्रति वर्ष 5% से बढ़ कर 2005 और 2012 के बीच 8.5% हुआ है।
वर्ष 2015 की स्टेट ऑफ इंडियाज लाइव्लीहुड (एसओआईएल) की रिपोर्ट कि अनुसार, इस मांग और आपूर्ति के अंतर से दूध की कीमतों में प्रति वर्ष 16% की औसत वृद्धि हुई है।
वर्ष 2015 के दशक में, दूध उत्पादन में 59% की वृद्धि हुई है, 9.2 करोड़ टन से बढ़ कर 2015 में 14.6 करोड़ टन हुआ है। लेकिन चारे की कमी से दुनिया में भारत की शीर्ष दूध उत्पादक की छवि पर प्रभाव पड़ सकता है।
गौरतलब है कि भारत का दूध के वैश्विक उत्पादन में लगभग 17% का योगदान है। भारत के पशुओं की दूध उत्पादकता वैश्विक औसत से आधी (48%) है। प्रति स्तनपायी 2,038 किलो के वैश्विक औसत की तुलना में प्रति स्तनपायी 987 किलो है।
आंकड़ों के अनुसार,चारे की उपलब्धता और गुणवत्ता का सीधा असर दूध उत्पादकता की गुणवत्ता और मात्रा पर पड़ता है। वर्ष 2015 एसओआईएल रिपोर्ट के अनुसार, प्रति दिन तीन राज्य जो दूध उत्पादकता के संबंध में सबसे ऊपर हैं, उन राज्यों में 10% से अधिक कृषि योग्य भूमि चराई के लिए निश्चित रखे गए हैं। ये तीन राज्य हैं, राजस्थान (704 ग्राम/दिन), हरियाणा (877 ग्राम /दिन) और पंजाब (1,032 ग्राम /दिन)। इस संबंध में राष्ट्रीय औसत 337 ग्राम/दिन है।
चारे के सभी तीन प्रकार की आपूर्ति में फिलहाल कमी है- हरा चारा 63%, सुखा चारा 24% और गाढ़े घोल वाला चारा 76% है। भारत में कुल कृषि योग्य भूमि का केवल 4% चारा उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। यह अनुपात पिछले चार दशकों से स्थिर बना हुआ है।
कृषि संबंधी संसदीय समिति के दिसम्बर 2016 की इस रिपोर्ट के अनुसार, दूध की मांग को देखते हुए, चारा उत्पादन की जरूरत के लिए भूमि दोगुनी करने की आवश्यकता है। चारे की कमी अब राज्यों को कहीं बाहर से चारा मंगाने पर लिए मजबूर कर रही है।
वर्ष 2015 की एसओआईएल रिपोर्ट कहती है, “यदि भारत पर्याप्त उत्पादन विकास दर हासिल करने में विफल रहता है, तो भारत को दुनिया के बाजार से महत्वपूर्ण आयात का सहारा लेने की आवश्यकता होगी। और क्योंकि भारत एक बड़ा उपभोक्ता है, इसलिए दूध की कीमतों में उछाल होने की भी संभावना है।”
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड