सरकार मनरेगा चलाये बाय जेसे मजदूरन का बाहर पलायन न करै का परै अउर वै अपने गांव क्षेत्र मा पैसा कमाय सकै। लकिन मनरेगा मा मनइन का (मजदूरी) काम न मिलै से बाहर पलायन करै का मजबूर अहैं।
मनरेगा मा मनई का साल मा सौ दिन काम मिलै कै नियम बाय लकिन बराबर पन्द्रह दिन भी काम नाय मिलत। काम मंागे के बादौ नाय मिलत। मनरेगा मजदूर जगह-जगह प्रदर्षन करै का मजबूर होय जाथिन। हिंआ तक भूखहड़ताल पै बैठा रहाथिन फिर भी काम नाय मिलत। सिर्फ आष्वासन मिल जाथै कि यतना दिन मा काम मिल जाये। जे मजदूर मनरेगा के काम पै निर्भर बाय। वकै काम न मिलै से जीवन-यापन कैसे चले?
जब सरकार नियम लगाये बाय कि हर मजदूरन का साल मा सौ दिन कै काम मिलै तौ वहि नियम का प्रषासन काहे नाय लागू करत? एक तरफ सरकारी नियम बाय कि मजदूरन का बराबर काम मिलै जेसे मजदूर बाहर पलायन न करैं लकिन यहि नियम कै सही असर गंावन मा नाय देखात बाय। सरकार नियम तौ लगाय दिहिस लकिन वकै जांच नाय करावत जेसे सही पता चल जाय कि नियम कै सही प्रक्रिया चलत बाय कि नाय।
फैज़ाबाद और अंबेडकरनगर में मनरेगा में काम पाने के लिए कटेहरी ब्लाक के पीठापुर सरैया बलिनवां जैसे कइयौ गांव कै मनई पिछले कुछ महीना मा घरना प्रदर्षन करिन। ये बावजूद, केंद्र सरकार कै बातचीत चलत रही कि मनरेगा योजना का कम कम कै दियै का चाही। अब सवाल ई उठाथै कि अगर ज़मीनी स्तर पै मनई योजना के तहत काम मांगत अहैं तौ राज्य सरकार अउर स्थानीय प्रषासन योजना का बढ़ावा काहे नाय दियत अहैं?
पलायन करै का मजबूर मनरेगा मजदूर
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