मनरेगा मा साल भर मा हर मजदूर का सौ दिन कै रोजगार दियै कै सरकार कै नियम बाय। जेसे मनरेगा मजदूर का अपने ग्रामसभा मा काम मिल सकै। वै अपने देष से दुसरे देष पलायन न करैं।
सरकार कै मंषा रही कि अगर मजदूरन का उनके गांव मा काम मिले तौ बाहर मजदूरी करै न जाए का परे। वहि नियम के अनुसार गांवन मा मजदूरन का सौ की जगह महीनौ भै काम नाय मिलत बाय। अगर कामौं मिलाथै तौ साल दुई साल बाद भी भुगतान नाय हुवत। यइसे मा मजदूर मजबूरी मा पलायन कराथिन। जहां रोज कै पैसा मिल जाए अउर दुई जून कै रोटी मिल सकै। हर मजदूर चाहाथिन की अपने घर परिवार के साथे रहै। अगर दस दिन मनरेगा मा काम मिलाथै तौ महीना भर पैसा के ताई बैंक अउर प्रधान कै चक्कर लगावै का पराथै। जेतना तौ मजउूरी नाय रहत वसे ज्यादा आवै जाए कै खर्च लागि जाथै। अपने मांग का लइके जगह जगह प्रदर्षन कराथिन, सरकार विरोधी नारा लगावाथिन जकिन का यस करे से उनकै समस्या हल होय जाथै? सिर्फ आष्वासन मिलाथै।
सरकार के हिंआ से तौ मजदूरन के ताई बहुत नियम आवाथै लकिन जमीनी हकीकत देखा जाए तौ पचास प्रतिषत ही सही लाभ मिलाथै बाकी नाय। ऐसे मा बाहर पलायन करब मजदूरन कै मजबूरी बनि जाथै।