बुन्देलखण्ड में सूखा-सूखा सब कोनऊ कहत हे पे ऊसे निपटे के लाने लाने कोनऊ अपाय ओर व्यवस्था नईं सोचत हे। अगर थोड़ी बोहोत सरकार सोचत हे तो ऊ जनता के बीच पोहचे से पेहले खत्म हो जात हे।
हम बात करत हे जानवरन के भूसा ओर पानी की बात। महोबा जिला के अभे एसे दर्जन गांव हे जिते भूसा को वितरण नईं भओ हे। गांव मे जनवरन के लाने पानी की चरही नई बनी हे। आदमी तो कोसे दूर चल ओर मेहनत करके खाना पानी की सुविधा कर लेत हे, पे बिना जुबान के जानवर कोसो दूर चलके भी नईं कर पाउत हे। जीव जन्तु खाना के बिना दो-तीन दिन जिन्दा रेह सकत हे पे पानी के बिना नईं। एई कारन हे की गांवन में जानवरन की लास के ऊपर लास देखे खा मिलत हे।
अब सवाल जा उठत हे की गांव में भूसा बोहतई कम भूसा बटो हे। पानी की व्यवस्था न के बराबर दिखात हे, ओर जिम्मेदार अधिकारी बजट न होंय की बात कहत हे। आखिर सरकार को भेजो गओ करोड़ो को बजट किते गओ। का ऊखो रिकार्ड कागज मे चढ़ाये के लाने दओ जात हे जा जमीनी स्थिर में दिखायें के लाने। का सरकारी अधिकारियन खा वेतन नई मिलत जो गरीब ओर लाचार आदमियन के साथे एसो करत हे। का अपने वेतन से पेट नई भरत हे। सरकार के बजट को बदरबाट नजर आउत हे। सरकार खा बोहतई ध्यान देय की जरूरत हे। तभई सूखा से निपटो जा सकत हे।