बुंदेलखंड में कहने को तो पेयजल परियोजनाओं की बाढ़ है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। परियोजनाओं के भरोसे बैठे लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं।
चित्रकूट जिला, मऊ ब्लॉक बरगढ़ में एशिया की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना कही जाने वाली पाठा पेयजल परियोजना भी इस इलाके में सफल नहीं हो पाई है। सरकारी मशीनरी की ढिलाई से यह परियोजना ठप हो गयी। जिसके चलते इस क्षेत्र के लगभग तीन सौ पछत्तर गांववासियों को पानी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है।
1973 में बनी इस पाठा पेयजल परियोजना को एशिया की सब से बड़ी परियोजना के नाम से जाना जाता है। एक अरब छियानवे करोड़ चार लाख पचासी हजार की लागत से बनी यह परियोजना अधबनी ही रह गई। इसके बन जाने से मऊ मानिकपुर के गांव और शहरी क्षेत्रों में पानी की सुविधा हो जाती लेकिन इसके पाइप आदि सभी टूटे पड़े हैं।
कोनिया गांव की कलावती का कहना है कि कई सालों से यहां काम चल रहा है। पर अभी तक पानी नहीं मिल पाया है।
गांववालों का कहना है कि अगर इसकी जगह नहर बनवा देते तो शायद पानी इंसान और जानवर दोंनो को आसानी से मिल पाता पर यह मशीन तो मुंह बांधे खड़ी है। हम लोग उम्मीद लगा के बैठे हैं कि आज नहीं तो कल, यह मशीन चालू होगी लेकिन समय बीतता जा रहा है और हम प्यासे भटक रहे हैं।
मानिकपुर के सेमरिया गांव के शंकर कहते है गर्मी आते ही हैंडपंप से पानी उतर जाता है। फिर लोग साइकिल में डिब्बा बांध कर दूर-दराज से पानी लाते है। अगर यह मशीन चालू होती तो क्यों हम नल का मुंह ताकते?
इस मामले में बीएन द्विवेदी महाप्रबन्धक चित्रकूट धाम मंडल जल संस्थान बांदा का कहना है पेयजल योजना से मौजूदा समय में 237 गांव को लगभग 35 हजार आबादी को पानी पहुंच रहा है। पर बिजली के लो-वोल्टेज के कारण यह दिक्कते हो रही है। सब से बड़ी समस्या है कि 400 वोल्ट कि जगह 200 वोल्ट मिल रहा है। इसलिए कम वोल्टेज से पम्प नहीं चल पाता है दूसरी बात गांव यहां से पन्द्रह किलोमीटर की दुरी पर हैं वह भी बीच पतालों में इसलिए पाइप लाइन के रख-रखाव में परेशानी होती है।
रिपोर्टर – मीरा जाटव