जिला महोबा, ब्लॉक चरखारी, गांव बलचौर, 27 अक्टूबर 2016। बलचौर गांव में 16 दिनों के अन्दर फैली चिकिनगुनिया की बीमारी में 4 लोगों की मौत हो गई है और कई और लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। पर गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम अभी तक झांकने के लिए भी नहीं आई है। गांव से अस्पताल पहुँचने का कोई साधन नहीं है, जिसके चलते लोग बीमारी की शुरुआत में खुद को दिखा नहीं पा रहे हैं और बीमारी बढ़ जाने पर अपनी जान से हाथ धो बैठ़ रहे हैं। प्राइवेट डॉक्टर को दिखाने के लिए लोग 5 किलोमीटर तक पैदल चलकर भी जा रहे हैं।
छोटे लाल, उम्र 40, बताते हैं कि गांव में लोग तेजी के साथ इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। बलवीर राव, उम्र 45, ने अपनी मां काशी, उम्र 75 का इलाज प्राइवेट अस्पताल में करवाया था पर इसके बावजूद भी उनकी मां बीमारी से बच नहीं सकी। गांव में रहने वाले लल्ली माई, उम्र 50, देवेन्द्र, उम्र14, और रामबाई, उम्र 46, इस समय चिकिनगुनिया की बीमारी से पीड़ित हैं, इनको तेज बुखार और जोड़ों में दर्द हैं।
काली चरण के पिता बैज लाल, उम्र 62, को बीमारी के कारण मल-मूत्र आना भी बन्द हो गया था, और अंत में उनकी मौत हो गई। शीला, जिनके पति मिही लाल की मौत भी चिकिनगुनिया के कारण हुई दुखी होकर कहती हैं, “मेरे पति का इलाज चल रहा था पर फिर भी हम उन्हें नहीं बचा पाए। जब उन्होंने दम तोड़ तब हम उन्हें डॉक्टर को दिखाकर ही आए थे।”
गांव में चिकिनगुनिया के फैलने के सारे इंतेजाम हैं -यहां की नालियां गन्दगी से भरी हुई हैं और खाली खेतों में घास-फूस भी बहुत बढ़ी हुई है। पर न तो कोई सफाईकर्मी इन भरी नालियों को साफ करने के लिए आयाहै और ना हीं मच्छरों से होने वाली इस बीमारी को रोकने के लिए कोई छिड़काव हो रहा है।
मंटा अरिहार बीमारी से होने वाली मौतों की वजह अस्पताल तक जाने वाले वाहनों की कमी बताते हैं, “जिनके पास मोटर साइकिल है वह तो अस्पताल में दिखा लेते हैं पर जिसके घर में कोई वाहन ना हो, वो बेचारे छोटे-मोटे बुखार को नज़रांदाज कर देते हैं, जिसके कारण बीमारी बढ़ जाती है। गांव से बाहर जाने के लिए कोई सार्वजनिक वाहन नहीं है, जिसके चलते ये बेचार गांव वाले किराये पर गाड़ी करके अस्पताल तक जाने की व्यवस्था करते हैं।”
कई लोग सरकारी अस्पताल में होने वाली भीड़-भाड़ और डॉक्टरों की मरीजों के प्रति अनदेखी के कारण वहां जाने से कतराते हैं। इनमे से हैं ओम प्रकाश, उम्र 54, “मैं ज्यादा लोगों में घबरा जाता हूं।” ओम प्रकाश की तरह रामबाई भी सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं करा रही हैं।
डॉ जगदीश नारायण त्रिपाठी, जो एक प्राइवेट डॉक्टर हैं, बताते हैं “बुखार और जोड़ों में दर्द की शिकायत करने वाला मरीज जब हमारे पास आता है, तो हम उसे दवा के साथ इंजेशन देते हैं। मरीज को दो इंजेशन तीन दिन तक दिए जाते हैं, और बीमारी की गम्भीरता में इंजेशन पांच दिन तक भी लगाते है।”
12 अक्टूबर से फैली इस बीमारी ने गांव में बहुत बुरा रुप ले लिया है। हालांकि अभी तक कोई स्वास्थ्य विभाग की टीम यहां आई तक नहीं है। गांव में हुई 4 मौतों के बाद लोगों के बीच चिकिनगुनिया के लिए एक दहशत है। स्वास्थ्य विभाग से इस मद्दे पर बात करने पर उन्होंने बात करने से मना कर दिया।
27/10/2016 को प्रकाशित