सरकार जभे मजदूरी को रूपइया नई दे पाउत हे तो का मजदूर आदमियन को पलायन रोक पेहे? जेसे देखो जाये महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी योजना (मनरेगा) में सरकार ने मजदूरन खे लाने करोड़ो रूपइया खर्च करो हे कि मजदूर आदमी बाहर पलायन करें न जाये।
का एसी बढ़त महगाई में मजदूर आदमी खा 162 रूपइया में पेट पल जेहे? एक तो गांव में काम नई मिलत हे, अगर काम मिलत भी हे, तो रूपइया पाये खें लाने सालन विभाग ओर अधिकारियन के चक्कर लगाउत हे। का सरकार के एते मजदूरन की मजदूरी देय खा रूपइया नइयां, जीसे मजदूर आदमियन खा परेशानी को सामना न करने परत हे।
हम बात करत हें महोबा जिला में मजदूरन की जोन आपन परिवार पाले खा बच्चन को भविष्य न देख के बाहर कमायें जात हे। सरकार आपन नाम कमाये के लाने तो गांव-गांव गलिन-गलिन में दिवार ओर बोर्डन में नारा लिखा दओ हे। गांव-गांव में काम मिलेगा, काम नहीं तो काम के बदले दाम मिलेगा। पे अगर देखो जाये तो ऊखों उल्टो होत हे। बात जा हे कि छानी कलां गांव के पचासन मजदूर ने नवम्बर 2013 में मनरेगा में एक महीना काम करो हतो। जीखो रूपइया अभे तक नई मिलो हे। विभाग ओर अधिकारियन के चक्कर लगाउत हें। बात जा स्पष्ट होत हे कि जभे मजदूरी को रूपइया सरकार के एते नइयां तो बिना मजदूरी को रूपइया कोन देहे। का एसी स्थिति में कोनऊ भी मजदूर गांव में काम करहे? जीखे घर में बिना मजदूरी के चुल्हे में आगी नई जात हे का ऊ परिवार अपने मजदूरी पायें खा विभाग के चक्कर लगाउत रेहे? जा सरकार के लाने बोहतई सोचनीय ओर गम्भीर बात हे।
न रूकहें पलायन तो होहे भविष्य बरबाद
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