मई महीने की शुरुआत के साथ ही दो महिला हिंसा के मामले बिलकिस बानो और ज्योति सिंह में महत्वपूर्ण फैसले आये। बिलकिस बानो केस 3 मार्च 2002 का है, जब 19 साल की गर्भवती बिलकिस के साथ 12 लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था। साथ ही उसके परिवार के 14 लोगों की हत्या भी कर दी थी। जिसमें सभी उसके परिवार के थे और उसकी बच्ची भी थी। ये घटना 2002 के गुजरात सांप्रदायिक दंगों के समय की है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की मदद से बिलकिस का केस महाराष्ट्र लाया गया गया था।
महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र की निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए और 12 दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए, सात दोषियों, पांच पुलिसकर्मी और दो चिकित्सक को सजा सुनाई। इन सभी पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप है।
पहले इस मामले की कार्यवाही गुजरात अदालत में चल रही थी, लेकिन इस केस के गवाहों को नुकसान पहुंचाने की आषंकाओं के तौर पर उच्चतम न्यायालय ने 2004 में अदालती कार्यवाही मुंबई न्यायालय में भेज दी।
महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के फैसले पर बिलकिस ने कहा कि पुलिस और चिकित्सकों ने अपने पेशे के साथ न्याय नहीं किया था। उन्होंने साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की थी। उन्हें सजा मिलनी चाहिए थी और अदालत ने ऐसा किया।
दूसरा मामला ज्योति सिंह का है, जिसे निर्भया कांड के नाम से जाना जाता है। इस मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। 16 दिसंबर 2012 में दिल्ली में 23 साल की निर्भया के साथ छह लोगों ने बलात्कार किया, जिसमें एक नाबालिग भी शामिल था। निर्भया का बर्बरता के साथ बलात्कार किया गया था।
इस मामले में 5 आरोपियों को फास्ट ट्रैक अदालत में फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसे उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा। वहीँ, नाबालिक आरोपी को नाबालिक होने के कारण फांसी की सजा से अलग रखा। 5 दोषियों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील भी दायर की थी। लेकिन सुप्रीम सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा। इस मामले के मुख्य दोषी राम सिंह ने पहले ही जेल में खुदकुशी कर ली थी और नाबालिक को दोषी मानते हुए सुधारगृह भेज दिया गया था आज वह तीन साल सुधारगृह में बीताने के बाद बाहर है।