प्रिय प्रधानमन्त्री जी,
साल 2015-16 में बहुत कुछ हुआ है। किन्नरों के अधिकार के लिए राज्य सभा में बिल पास हुआ है, कोलकाता पुलिस में और स्कूल में पहली बार किन्नरों को शामिल किया गया। लेकिन फिर भी मुझे इस साल से डर है। जब तक समलैंगिक सेक्स को गैरकानूनी माना जाएगा, तब तक यह कदम कुछ काम के नहीं है।
मुझे डर लगता है कि मैं अपने साथी का हाथ पब्लिक में नहीं पकड़ सकता। मुझे ऐसा क्यों लगता है कि सरकार हमें कह रही हैं कि काम करो, मजा करो, पढ़ाओ, लेकिन एक दूसरे से प्यार ना करो।
2 फरवरी एल जी बी टी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण दिन था। इसी दिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट को धारा 377 को संविधान से हटाने का आर्डर रोक दिया था। इससे एल जी बी टी समुदाय फिर कानूनी दायरे के बहार हो गयी थी। इस साल 2 फरवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट की धारा 377 पर आखरी सुनवाई थी। जिसमें कहा गया कि उच्चतम न्यायलय के पांच न्यायधीशों (बड़ी न्यायाधीश) की बेंच इसकी सुनवाई करेगी। चुंकि यह तीन न्यायधीशों का बेंच है इस वजह से तत्काल स्थगित किया जाता है।
मुझे मालूम हैं कि समलैंगिक सेक्स के बारे में जागरूकता बढ़ाना सिर्फ आपकी जि़म्मेदारी नहीं है। इस साल मैं भी अपने दोस्तों, रिश्तेदारो के साथ धारा 377 की चर्चाएं करूँगा। यह बताऊंगा कि समलैंगिक लोग भी सबकी तरह हैं।
अगर मुझे आपसे बात करने का मौका मिलता है, तो मैं आपको 27 साल के राय नामक लड़के के बारे में बताऊंगा जिसके मालिक ने उसे खूब तंग किया हैं, ‘मर्द बनो‘ कहकर। मैं आपको बीनी के बारे में भी बताऊंगा जिसे पुलिस भारतीय नागरिक का दर्जा नहीं देती है।
मुझे यह समझ नहीं आता कि मेरे निजी जीवन पर सरकार का हक क्यों? जब संसद के सदस्य मुझ जैसे एल जी बी टी समुदाय के लोगों का मजाक उड़ाते हैं, तो मुझे गुस्सा आता है और बुरा लगता है।
प्रधान मंत्रीजी मैं आपसे बात करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन क्या आप तैयार हैं?
अनिर्बान घोष कोलकता के चित्रकार हैं और उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को 377 पे चिट्ठी लिखी है।