किसानन खातिर सींच के व्यवस्था करब सरकार के जिम्मेदारी होत हवै। न कि किसानन के जमीन लइके वहिका दुरूपयोग कीन जाये। यहिका उदाहरण चित्रकूट जिला, ब्लाक कर्वी, गांव रसिन मा हवै।
वा नहर का टिटिहरा गांव तक बनै का रहै,पै वा नहर बस गौषाला पुरवा तक बनी हवै। अगर टिटिहरा गांव तक नहर बन जाये तौ लगभग सात गांव के किसानन खातिर सिंचाई के सुविधा होइ सकत हवै। नहर बनै मा सैकड़न किसानन के जमीन चली गे, पै नहर बनै से किसानन का कउनौ फायदा नहीं आय। अगर सिंचाई विभाग मा कहा जात हवै तौ उंई कहि देत हवैं कि सरकार कइती से बजट नहीं आवा आय। नहर मा लगभग सैकड़न किसान मजूरी करै लाग हवैं। उनकर खेती के जमीन नहीं बची आय। जेहिसे उंई कउनौ भी फसल लगा सकैं।
आखिर या बात के जवाब देही दे के जिम्मेदारी केहिके आय। नहर अबै तक पूर बन के काहे नहीं तैयार भे आय। या बात का इंतजार हुंवा के जनता का हवै। किसानन के साथै इनतान काहे कीन गा हवै।
नहर काहे हवै अधूरी
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