ई साल बड़े-बड़े शहरन में बाढ़ आई हे, जीखी सूचना भारत सरकार से लेके छोट-छोट बच्चन खा पता हे। ईखी सहायता ओर मुआवजा के लाने हर विभाग के अधिकारियन ने प्रयास करो हे, पे छोट-छोट गांव में पानी से जोन मकान गिरे को लाखन रूपइया को नुकसान भओ हे। ईखी जानकारी न तो कोनऊ विभाग खा पता हे, ओर न तो राज्य सरकार खा?
महोबा जिला में नदी तो नइयां, पे ज्यादा बारिस होंय से गांवन में छोट-छोट पुलियां होंय से गांव डूब क्षेत्र में आ जात हे। जीसे घरन को समान ओर जानवर के बहे से लाखन को नुकसान हो जात हे। कहुं-कहूं तो नाला नइयां, जीसे आदमी ओर बच्चा दो-दो महीना तक गांव के बाहर नई निकरत आयें। जोन नाला बने हें ऊ भी नाला होंय छोट हे, जीसे सड़क में जाम लग जात हे। जीसे आदमियन खा आय-जाय में परेशानी होत हे। जा बात न तो सरकार खा पता हे ओर न जिला के सरकारी कर्मचारियन खा ? का जिते बड़ी नदी हे ओतई बाढ़ आउत हे ओर ओतई नुकसान होत हे। आखिर सरकार गांव ओर शहर में इत्तो भेदभाव काय करत हे? जीखी सूचना न तो सरकार खा न तो अधिकारियन खा?
ईखे बारे में जभे दैवीय आपदा विभाग में बात करी तो ऊने आसानी से कह दओ कि महोबा में कोनऊ नाला नइयां। जीसे गांवन में बाढ़ आ सके। 29 अगस्त 2013 खा जैतपुर ब्लाक के सुगिरा गांव में नाला के बाढ़ से पूरो दिन जाम लगो रहो हे। जीसे आयें-जायें वाले आदमियन खा बोहतई परेशानी आई हे। सोचे वाली बात तो जा हे कि का जिते नदी हे ओतई बाढ़ आउत हे ओर नुकसान होत हे?
नदी न होय से बाढ़ से अन्जान अधिकारी
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