भारत की 86 फीसदी मुद्रा को अमान्य करने की घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता से मुश्किलें समाप्त करने के लिए 50 दिनों का वक़्त माँगा था। लेकिन भारत में पुनर्मुद्रीकरण के मुद्दों पर तथ्यों का घोर अभाव रहा है।
भारतीय प्रिंटिंग प्रेस और मुद्रा वितरण की क्षमता पर 2016 के भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े जारी किये हैं कि वर्तमान दरों पर प्रधानमंत्री द्वारा तय समय सीमा में लक्ष्य प्राप्त करना असम्भव है। देश भर में बैंकों और एटीएम में पर्याप्त पैसे मिलना इस बात पर निर्भर करेगा कि कितने नोट सरकार प्रचलन में वापस डालना चाहती है।
यदि सरकार 9 लाख करोड़ रुपए व्यवहार में लाना चाहती है तो इसमें मई 2017 तक का समय लग जाएगा और अगर सरकार पूरे वापस लिए गए 14 लाख करोड़ रुपए फिर से उपयोग में लाना चाहती है तो इसमें अगस्त 2017 तक समय लगेगा।
इस समस्या से जुड़े कुछ तथ्य–
भारतीय रिजर्व बैंक के पास चार प्रेस हैं: मध्य प्रदेश के देवास में, महाराष्ट्र के नासिक में, पश्चिम बंगाल के सालबोनी में और कर्नाटक के मैसूर में। भारतीय रिजर्व बैंक की 2016 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, मोटे तौर पर इन प्रेस की मुद्रण क्षमता एक साल में दो हज़ार छह सौ सत्तर करोड़ नोट है या मोटे तौर कहें तो एक दिन में 7.4 करोड़ नोट प्रिंट होते हैं।
यदि प्रेस एक दिन में दो की बजाय तीन शिफ्ट में काम करती है तो एक दिन में उनकी दैनिक उत्पादन क्षमता 11.1 करोड़ नोट तक बढ़ेगी।
हालांकि, इन प्रेस में आधे से कम मशीनों के पास ही उच्च मूल्य के नोटों (500 रुपये और उससे ऊपर) को प्रिंट करने के लिए आवश्यक सुरक्षा प्रबंध की क्षमता है।
इसका मतलब यह है कि यदि वे सारे मशीन, जो चारों प्रेस में उच्च मूल्य के नोट प्रिंट करते हैं, दिन के 24 घंटे भी 500 रुपए के नोट प्रिंट करें तो हम हर दिन 500 रुपए के 5.56 करोड़ रुपए प्रिंट करने में सक्षम हो पाएंगे।
यह प्रतिदिन 500 रुपए में प्रिंट नोटों को दो हज़ार सात सौ अठत्तर करोड़ रुपए में परिवर्तित कर पाएगी।
विमुद्रीकरण की घोषणा के पहले, सरकार ने दो हजार रुपए के 200 करोड़ नोट या मोटे तौर पर मूल्य में करीब 4 लाख करोड़ रुपए प्रिंट करने की तैयारी कर ली थी। यह वितरण किए जाने वाले नोटों का पहला सेट था। इतने सारे गुलाबी नोटों के प्रचलन में होने का यही कारण है।
इस राशि को नकदी के रूप में जारी करने के लिए कुछ शर्तें भी जरुरी हैं। जितनी राशि प्रचलन में हो, उसमें दो हजार रुपए के नोट की हिस्सेदारी पचास फीसदी से ज्यादा न हो। इसके पीछे का तर्क बाजार में छुट्टे न होना है। अगर हमारे पास छुट्टे नहीं हैं तो दो हजार रुपए का नोट को चलाना मुश्किल है, जैसा कि वर्तमान में हो रहा है। बाकी की राशि छोटे नोटों की शक्ल में चलन में हो। भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, 100 रुपए, 50 रुपए, 20 रुपए और 10 रुपए के नोटों का कुल मूल्य 2.19 लाख करोड़ रुपए है।
साभार: इंडियास्पेंड