केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए जो विधेयक तैयार किया, उसका विरोध किसान संगठन और दूसरी सभी राजनीतिक पार्टियां कर रही है। इनका कहना है कि अगर यह विधेयक पास हो गया तो अर्थव्यवस्था का आधार रही खेती-किसानी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
दिल्ली। भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ समाजसेवी अन्ना हज़ारे ने 23 फरवरी से दिल्ली के जंतर मंतर में धरना दिया। दो दिन चले इस धरने में हज़ारों महिला और पुरुष किसान देशभर से आए। अन्ना हज़ारे ने केंद्र में मौजूद मोदी सरकार को किसान विरोधी बताया। उन्होंने कहा कि नौ महीने पहले भारतीय जनता पार्टी कह रही थी कि अगर वह केंद्र मेंआई तो सबके अच्छे दिन आ जाएंगे। तो क्या यही अच्छे दिन हैं? उधर लोकसभा में मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी, मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, कांग्रेस समेत सभी पार्टियों ने विरोध जताया।
सरकार पर लग रहे आरोप
-सरकार इस विधेयक के जरिए किसानों की जमीन हड़पने का रास्ता खोल रही है।
-भारत कृषि प्रधान देश है। ऐसे में सरकार अगर अपनी मर्जी से जहां चाहे वहां उद्योग लगा देगी तो खेती लगातार कम होती जाएगी।
क्यों हो रहा विरोध
– नए विधेयक में उद्योगों के लिए ज़मीन अधिग्रहण के लिए किसानों की सहमति ज़रूरी नहीं है। अगर सरकार ने तय कर लिया तो ज़मीन देनी ही पड़ेगी। अगर किसान विरोध जताते हुए मुआवज़ा लेने से इनकार कर देता है तो यह मुआवज़ा सरकारी खज़ाने में चला जाएगा।
-पुराने विधेयक में उद्योग के लिए ली गई ज़मीन में पांच साल के अंदर उद्योग शुरू करना होता था। लेकिन अब यह सीमा बढ़ाकर पंद्रह साल कर दी गई है। पहले अगर तय समय में उद्योग नहीं शुरू होता था तो किसानों को ज़मीन वापस कर दी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
-नए विधेयक में उपजाऊ ज़मीन पर सरकारी या सरकारी और निजी भागीदारी वाले उद्योग बिना रोक टोक लगाए जा सकते हैं।