कर्नाटक। धर्म की कट्टरता ने एक और जान ले ली। नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पंसारे और एम.एम.कलबुर्गी की हत्या में खास तरह की समानता है। यह सभी अंधविश्वास या अंधश्रद्धा के विरोधी थे। सदियों पुरानी कई परंपराओं और विश्वासों के खिलाफ इन्होंने खुलकर लिखा। तार्किक और वैज्ञानिक तरीकों से अंधविश्वास को खत्म करने की कोशिशें कीं।
नरेंद्र दाभोलकर अंधविश्वास के खिलाफ कानून लाने की मांग कर रहे थे। लेकिन इनकी यह मांग कट्टर हिंदूवादी संगठनों की सोच के खिलाफ थी। दाभोलकर की हत्या 2013 और मराठी लेखक गोविंद पंसारे की हत्या 2014 में की गई थी।
30 सितंबर को एक अज्ञात मोटरसाइकिल सवार ने कलबुर्गी की गोली मारकर हत्या कर दी। कलबुर्गी ने कई किताबें लिखीं। 1983 में लिखी एक किताब पर कर्नाटक का सबसे प्रभावशाली हिंदू समुदाय इतना नाराज़ हुआ था कि इस किताब को उन्होंने धर्मद्रोह का नाम दिया था। कलबुर्गी धर्म के मामलों में अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते थे। ये हम्पी के कन्नड़ विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर के पद पर बहुत समय तक रहे थे। इस पद पर रहते हुए 2006 में इन्हें राष्ट्रीय साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित किया गया था। यह मूर्ति पूजा के खिलाफ थे। यही कारण था कि यह कट्टर हिंदूवादियों के निशाने पर काफी समय से थे।
कट्टर हिंदूवादी लिंगायत समुदाय
कर्नाटक की राजनिति में लिंगायत एक प्रभावशाली हिंदू समुदाय है। कुल जनसंख्या में बारह से चैदह प्रतिशत लिंगायत हैं। राज्य के ज़्यादातर मुख्यमंत्री इसी समुदाय के रहे हैं। माना जाता है कि यह लोग भारतीय जनता पार्टी के कट्टर समर्थक हैं। कलबुर्गी ने इस समुदाय की कई परंपराओं और अंधविश्वासों के खिलाफ खुलकर लिखा था। राज्य में लिंगायत समुदाय से जुड़े दो हज़ार मठ हैं। यह मठ कई काॅलेज चलाते हैं। कलबुर्गी वचन काव्य के विशेषज्ञ थे। वचन लिंगायत समुदाय की रोज़ की पूजा का हिस्सा होते हैं। कलबुर्गी ने इन वचनों की व्याख्या उदारवादी ढंग से की थी। इस व्याख्या से लिंगायत समुदाय बहुत नाराज़ था।