दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में जेएनयू के उमर खालिद और शहला राशीद को बुलाने के मामले ने 22 फरवरी को हिंसक रूप ले लिया। यह कार्यक्रम अपने विचार रखने और समाज के दबे-कुचले वर्ग को आगे लाने का प्रयास करने के लिए रखा गया था। कॉलेज के इस कार्यक्रम में इन दोनों लोगों को बुलाने के विरोध में 21 फरवरी को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने रामजस कॉलेज में काफी हंगामा किया था जिसके कारण वे दोनों कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर सके। एबीवीपी के इस हंगामे के विरोध में 22 फरवरी को एसएफआइ, आइसा समेत विभिन्न छात्र दलों ने बुधवार को विरोध मार्च निकाला जिसके खिलाफ एबीवीपी के कार्यकर्ता खड़े हो गए और मामला हिंसक हो गया।
आरोप है कि एबीवीपी कार्यकर्ताओं की हुई पत्थरबाजी में अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर प्रशांत मुखर्जी घायल हो गए, जिन्हें हिंदूराव अस्पताल ले जाया गया। झड़प के कारण एक महिला पत्रकार सहित कई छात्रों को चोटें आई हैं। स्थिति संभालने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।
रामजस कॉलेज में मंगलवार को भारतीय जनजातियों को लेकर दो दिवसीय सेमिनार के पहले सत्र को एबीवीपी के छात्रों ने बाधित किया था। भारतीय जनजातियों पर ही उमर खालिद पीएचडी थीसिस लिख रहे हैं। एबीवीपी के छात्रों ने खालिद को ‘राष्ट्रद्रोही’ बताते हुए नारे लगाए और मंगलवार को होने वाले पूरे दिन को कार्यक्रम को रोकने पर मजबूर किया।
बताते चलें कि दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज की साहित्य सोसाइटी विचारों की अभियक्ति को लेकर दो दिवसीय सेमिनार ‘प्रदर्शन की संस्कृति’ में उमर खालिद और शहला राशिद को संबोधन के लिए बुलाया गया था। लेकिन यह आमंत्रण एबीवीपी और छात्र संघ के हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद मंगलवार को रद्द कर दिया गया।
इस घटना से अब ये बात एक बार फिर से चर्चा में है, कि आजाद सोच पर रोक लगाना क्या अब कानून बन गया है? क्या अब इन शिक्षाओं के मंदिरों में वाद विवाद करना भी मना हो रहा है?