पिछले हफ़्ते दहेज के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने वाली सत्यरानी चढ्ढा का देहांत हो गया। 1979 में अपनी बेटी की मौत के बाद उन्होंने यह आंदोलन शुरू किया था। उनका साथ उनकी दोस्त शाहजहान आपा ने दिया। दोनों ने मिलकर ही शक्तिशालिनी नाम की संस्था की नींव रखी।
दहेज के कारण अपनी बीस साल की गर्भवती बेटी की मौत के दुख ने उन्हें ऐसा करने का साहस दिया। बेटी के लिए लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने न जाने कितनी लड़कियों को न्याय दिलाया। 1983 को उनके हाथ पहली सफलता लगी जब दहेज की कानूनी परिभाषा बदली गई। नई परिभाषा के अनुसार शादी के दौरान किसी भी समय उपहार की मांग करना दहेज ही माना जाएगा। दूसरा संशोधन भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1986 में किया गया। जिसके अनुसार शादी के सात सालों तक पति या ससुराल वालों की किसी भी तरह की हिंसा के कारण लड़की की मौत होने पर उसे दहेज कानून के तहत ही रखा जाएगा।
दहेज के खिलाफ शुरू किया था आंदोलन
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