जयपुर, राजस्थान। राजस्थान के कई स्कूलों में शौचालयों की सफाई वहां पढ़ने वाली नीची समझी जाने वाली जातियों की छात्राएं करती हैं। इन छात्राओं को यह काम करने के लिए पचास रुपए तक दिए जाते हैं। चैंकाने वाला सच एक गैर सरकारी संगठन भारत बाल विज्ञान समिति द्वारा कराए गए एक सर्वे में 19 फरवरी को सामने आया है।
सर्वे को कराने के लिए उच्च न्यायालय ने इस गैर सरकारी संगठन से संपर्क कर दिशा निर्देश जारी किए थे। दरअसल राधा शेखावत नाम की एक महिला ने याचिका डाली थी। इसमें स्कूलों में शौचालयों की मौजूदगी, इन्हें साफ करने के लिए यहां नियुक्त सफाई कर्मियों के आंकड़े सूचना का अधिकार के तहत मांगे थे।
इसके बाद उच्च न्यायालय ने इस सर्वे को करने का आदेश दिया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि माहवारी के समय लड़कियों के स्कूल न आने का यह एक बहुत बड़ा कारण हैं। लड़कियों की मां का कहना था कि एक तो शौचालय हीं नहीं हैैैं भी तो इतने गंदे की वहां ऐसे समय मे जाना ठीक नहीं रहता।
रिपोर्ट में चैंकाने वाले आंकड़े
गैर सरकारी संगठन ने जयपुर के दस ब्लाकों के एक सौ अड़तिस स्कूलों में यह सर्वे कराया था। इसमें से चैबीस स्कूलों मे शौचालय थे ही नहीं। जबकि पिचहत्तर स्कूलों के शौचालयों में सफाई की समस्या थी। इन स्कूलों में कुल तेईस हज़ार एक सौ दो बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से छप्पन प्रतिशत लड़कियां हैं। करीब सोलह प्रतिशत अनुसूचित जातियों के छात्र छात्राएं हैं। साढ़े छब्बीस प्रतिशत अनुसूचित जन जातियों के और तेरह प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के छात्र छात्राएं यहां पढ़ते हैं। सर्वे के दौरान पाया गया कि ज़्यादातर स्कूलों में सफाई कर्मचारी नियुक्त ही नहीं किए गए हैं। यहां पर अनुसूचित जातियों के बच्चों से शौचालय साफ करवाए जाते हैं। खासतौर पर लड़कियों को यह काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
दलित लड़कियों से साफ कराए जाते हैं शौचालय
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