खाना किसी दलित ने बनाया है? या खाने को परोसने वाला दलित है? ग्राहकों के लिए आज भी यह ज़रूरी सवाल हैं।
मिलिये चंद्रभान प्रसाद से – चन्द्रभान एक दलित व्यापारी हैं जो दलित भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल में सलाहकार भी हैं। उन्होंने हाल ही में एक नया कारोबार शुरू किया है। यहां वह इन्टरनेट पर वेबसाइट के माध्यम से खाने का सामान बेचते हैं। इस वेबसाइट का नाम है ‘दलित फूड्स’ यानि ‘दलितों का खाना’। फिलहाल वेबसाइट पर कुछ ही सामान मौजूद हैं, जैसे-बुंदेलखंड से धनिया, राजस्थान से लाल मिर्च, महाराष्ट्र के वर्धा से एक विशेष प्रकार की हल्दी आदि।
प्रसाद के मुताबिक ये कारोबार एक तरह का सामाजिक प्रयोग है जिसके जरिये वह देखना चाहते हैं कि क्या भारत में लोग दलित द्वारा बनाया गया खाना खरीदते हैं? कारोबार का नाम ‘दलित फूड्स’ इसलिए दिया गया है क्योंकि प्रसाद अपनी पहचान छिपाना नहीं चाहते। प्रसाद का कहना है कि अब तक दलितों के बनाये गए उत्पादकों को लोग अलग-अलग नाम से बेचते हैं। अब ज़रूरी है कि दलित व्यापारी सामाजिक भेद-भाव को चुनौती दें और अपने उत्पादन को बाज़ार में ख़ुद बेच पाएँ।
प्रसाद का कारोबार अभी दिल्ली तक ही सीमित है। अगर भारी मात्रा में ग्राहकों ने सामान खरीदा तो वह अन्य शहरों में भी कारोबार फैलायेंगे।