मेरा नाम रूचि है। सुबह के 11 बज रहे थे। हल्की धूप थी और मैं कॉलेज से वापस घर आ रही थी। जैसे ही मैं अपने मोहल्ले में पहुंची, सामने से एक लड़का बैग लेकर आते दिखाई दिया। पहले मैंने उसको एक अजनबी के रूप में देखा लेकिन जैसे ही वह मेरे पास आया तो उसने मुझे रोका। मैं चौंक गयी, इससे पहले कि मैं उससे कुछ पूछ पाती वह धीमी आवाज़ में पूछता है, तुम कहाँ गयी थी ? मैंने झिझक कर जवाब दिया, कॉलेज से आई हूँ। जब मैंने उससे परिचय पूछा तो उसने ज़ोर से हँसते हुए कहा “अच्छा तुम मुझे नहीं जानती हो? मैंने कहा, नहीं। उसने कहा कि वो 2009 में यहीं रहा करता था और अब मेरे ही कॉलेज में पढ़ता है। इस बात को सुन के मैं और भी अचम्भे में पड़ गई कि इतने दिनों बाद भी उसे मेरा नाम और चेहरा याद है।
तीसरे दिन हम फिर कॉलेज पेपर देने गए, उसका भी पेपर था। हम दोनों फिर वहां मिल गए और हँसते हुए पढ़ाई के बारे में बात करते चलने लगे। इस तरह हम दोनों पैदल चलते रोड तक आये। उसने मुझसे नंबर माँगा। वह महिलाओं और लड़कियों के लिए सोचता था। उसकी सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि महिलाओं को आगे आते देखकर उसको ख़ुशी होती थी।
मेरे काम को सुनकर भी वह बहुत खुश हुआ। वह दिल्ली में रह कर कंपनी में रह कर काम करता था। मैंने उसको अपना नंबर दे दिया। और हम दोनों अपने-अपने घर चले गए।
जब पहली बार उसने फ़ोन किया और हम दोनों हँसते हुए 10 मिनट तक काम के बारे में बात करते रहे। उसने अपने दोस्तों और अपने ऑफिस के काम के बारे में बताया फिर मैंने भी अपने काम के बारे में बात की।
अब हम फिर से वापिस बारिश के मौसम में ही मिलने वाले हैं। और आगे की कहानी अगली बार।
यह लेख खबर लहरिया और एजेंट्स ऑफ़ इश्क की कार्यशाला में लिखा गया है।