यही वो दिन हैं जब बुंदेलखंड के ज्यादातर क्षेत्रों में मई से जून तक तेंदू के पत्ते तोड़ने का काम जोरशोर से होता है। यह पत्ता बीड़ी बनाने और कत्था बनाने के काम आता है। इस तेंदू के पेड़ की लकड़ी और पत्ता दोनों ही उपयोग में लाये जाते हैं।
चित्रकूट जिले के मानिकपुर और मऊ क्षेत्र के बरगढ़ में तेंदू के पत्ते का काम अधिक किया जाता है। इसके लिए हर साल वन निगम तेंदू के पत्ते तुड़वाने के लिए लोगों को ठेका देती थी लेकिन इस वर्ष डकैतों के डर के कारण ठेका ही नहीं दिया गया। यह डकैत इस काम में अपना कमीशन मांगते हैं जिससे लोगों को अब डर लगने लगा है।
सरहट गांव, मानिकपुर ब्लॉक से दो किलोमीटर दूर है। गांव के ज्यादातर लोग सुबह 6 बजे ही जंगल पत्ते तोड़ने चले जाते हैं और दोपहर तक वापस आते हैं। पत्तीयां तोड़ने का काम परिवार के बच्चे, बूढ़े सभी करते हैं। पत्तीयों का बंडल बनाने का काम भी सभी करते है। दरअसल, पत्तियां बेचने के लिए महिलाओं को मानिकपुर ट्रेन से नैनी और इलाहाबाद जाना पड़ता है। यह महिलाएं बिना टिकेट के कई बोरे भरकर एक साथ ले जाती हैं। इस बीच उन्हें टीटी भी टिकट के लिए परेशान नहीं करता लेकिन यदि पुरुष यह काम करते हैं तो उन्हें तुरंत ट्रेन से उतार देते हैं या जेल में डाल देते हैं और यही वजह है कि पत्तियों को बेचने का काम सिर्फ महिलाएं ही करती हैं।
सरहट गांव की 35 वर्ष फूला बताती हैं कि हम सुबह छह बजे उठ कर जंगल जाते हैं। वैसे तो पत्तियां अच्छी मिल जाती थी लेकिन इस बार पत्तियों के लिए भटकना पड़ रहा है। पत्तियां तोड़ने के लिए इस बार पांच से दस किलोमीटर पैदल चलना पड़ रहा है। इस तेज़ धूप में बिना खाने-पानी के काम करना मुश्किल होता है लेकिन हम इस बात से खुश हैं कि सरकार ने इस बार ठेका नहीं दिया है। इससे हम डकैतों की दबंगाई के बिना अपनी मर्जी से काम कर रहे हैं। एक बंडल में 50 पत्ते लगाते थे तब जाकर एक हजार बंडल का पचास साठ रूपये मिलते थे पर हम इलाहाबाद और नैनी में बेंचते है। तो 70 रूपये किलो बिकता है। एक हजार गड्डी में चार पांच किलो निकलता है तो आराम से परिवार चलता है।
एक हजार की गड्डी को हम पांच दिन में तैयार करते है। बेचने के समय खुद जाते हैं वो भी ट्रेन को भागते हुए पकड़ते हैं, अगर टीटी ने यहाँ हमें पकड़ लिया तो 30, 40रुपए रखवा लेता है। पति को इसलिए नहीं भेजते है। मेरे परिवार में सात लोग है और हम मिल कर दो दिन में 500 रुपए कमा लेते हैं.
इस मामले में चित्रकूट जिला के वन निगम विभाग कार्यालय के अधिक्षक सुरेश नारायण त्रिपाठी कहना है कि जिले में 6 रेंज है बरगढ, मऊ, रैपुरा, मानिकपुर, मारकुण्डी कर्वी में हमारे यहां से पत्ती तोड़ने का ठेका विभाग द्वारा दिया जाता है जिसे फडमुन्शी के नाम से जाना जाता है। हमारे जिले में 350 फडमुन्शी है। इनको कमीशन दिया जाता है। एक हजार बंडलों में 29 रुपए 50 पैसा उसी हिसाब से वह काम करवाते है। पचास पत्तो का बंडल का 91 पैसा के हिसाब से दिया जाता है।
इस साल पत्तीयां बहुत खराब हैं सूखे में पानी न मिलने से पत्तियां छोटी रह गई हैं।
डकैतों के बारे में पूछने पर उन्होंने मना कर दिया। फिर कहा कि हां, कुछ जगहों पर डकैतों का खौफ है और लोगों कि सुरक्षा को लेकर हमने एसपी को लिखित में दिया है। डकैतो ने कई जगह रोक लगाई है, कमीशन को लेकर उनके साथ बातचीत हुई है कि गरीब मजदूर कहां से देगें। इसलिए उनको न परेशान किया जाये।
रिपोर्टर – मीरा जाटव