बांदा। हर महीने की अमावस्या में राम आसरे चित्रकूट के रामघाट में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले से अपने तम्बूरे की मीठी धुन सुनाने के लिए आते हैं। यहां उन्हें लोग उनके नाम से नहीं बल्कि तम्बूरा वादक के नाम से जानते हैं। करीब पैंतालिस साल के राम आसरे का इसे जुनून कहें या शौक लेकिन बचपन से ही उनमें तम्बूरा बजाने की लगन जग गई थी। कोई गुरु तो नहीं मिला लेकिन अपने खुद ही वह अभ्यास में जुट गए। हां इस बीच कुछ किताबें जरूर खरीदीं जिनमें तरह तरह के बाजे बजाने के तरीके लिखे थे। इन्हीं से उन्होंने तम्बूरा बजाने का तरीका खोज लिया। उन्होंने बताया कि बचपन में उन्होंने सपना देखा था कि वह इस बाजे को लेकर देश दुनिया के किसी बड़े मंच पर जाएंगे लेकिन गरीबी के कारण यह सपना पूरा नहीं हुआ। पर उन्होंने बजाना बंद नहीं किया। चित्रकूट के रामघाट में उन्हें सबसे ज्यादा मजा आता है। यहां दुनियाभर के लोग उन्हें सुनते हैं। इस तरह से उन्हें भले ही दुनिया का बड़ा मंच न मिला हो लेकिन उन्होेंने लोगों कोे इसे सुनाने का तरीका ढूंढ़ ही निकाला। यहां पहचान मिलने के साथ अच्छी खासी कमाई भी हो जाती है।
तम्बूरा वादक रामआसरे
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