जिला बांदा। मार्च में हुई बेमौसम बरसात से किसान अभी उबर नहीं पाए थे कि 11 अप्रैल से 15 अप्रैल तक दोबारा हुई बरसात कहर बनकर बरसी। खेत और खलिहानों में पानी भर गया है। बर्बाद फसलों को देखकर कहीं किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो कई किसानों को सदमें में दिल का दौरा पड़ गया। बटाईदार या यों कहें खेत मजदूर। इनके पास अपना खेत नहीं होता है। वह दूसरे के खेत में काम करते हैं। अनाज में बंटवारा होता है। खेत मालिक को फिर भी मुआवज़्ो की आस है। लेकिन बटाईदार तो अनाज पर ही निर्भर करता है। वह तो पूरी तरह निराश है। हालांकि मुआवज़्ो की बात करें तो यहां भी आधा अधूरा ही मिल रहा है। किसी को मिल रहा है तो किसी को नहीं भी।
सदमे से मौतें
तिन्दवारी ब्लाक, गांव जसईपुर। सरकार कुछ भी कहे। लेकिन बर्बाद फसलों को देखकर किसान सदमे में हैं। आत्महत्या के अलावा कई मौतें सदमे से भी हो रहीं हैं। यहां के गरीबा ने बताया कि उसका पचास साल का लड़का छेदुवा 9 अप्रैल को खेत में फसल काटने गया था। वहां पर खराब फसल देख गिर पड़ा। उसको दिल का दौरा पड़ा। बेहोशी की हालत में तिन्दवारी अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन वहां उसकी मौत हो गई। उसके तीन बच्चे हैं। दो बीघा खेती है। उसने चना मसूर बोई थी। पन्द्रह हज़्ाार रुपए सोसाइटी से जनवरी 2015 में कर्ज़ लिया था।
नरैनी ब्लाक, के पनगरा गांव। यहां के पैंसठ साल के किसान भइयाराम की मौत 14 अप्रैल को दिल का दौरा पड़ने से ही गई है। उनके पास पांच बीघा ज़्ामीन है। पिछले साल उन्होंने इलाहाबाद यू.पी. ग्रामीण बैंक से पैतालीस हज़्ाार रुपए का कर्ज लिया था।
बटाईदार क्या करे?
महुआ ब्लाक, गांव डोंगरी। यहां की पचहत्तर साल की पच्ची कहती है कि चार बीघा गांव के बड़े किसानों की खेती बटाई पर ली है। खेत में फसल काटते हुए गेहूं की बाली को हाथ में कुचल कर मुंह से फूंका तो भूसे के साथ पतला गेहूं भी उड़ गया। बरसात ने गेहूं की गुणवत्ता भी खत्म कर दी है। अब जिनकी जिनकी जमीन है उन्हें तो मुआवज़्ो की आस है। हमें तो फसल की ही आस होती है। वह भी इस बार बरसात ले गई।
शिवहद गांव। यहां के किसान दिनेश कुमार ने बताया कि गांव के बाबा दीन यादव की 4 बीघे खेती तिहइया में ली है। मतलब फसल का तीन हिस्सा खेतिहर का है एक हिस्सा हमारा। इस साल आठ कुन्टल गेहूं हुआ है जब कि सोलह कुन्टल होना चाहिए। जहां पांच कुन्टल गेहूं मिलने की आस थी वहीं अब यह करीब ढाई कुन्टल ही मिलेगा।
दस बीघा और चार हज़्ाार मुआवज़्ाा
नरैनी ब्लाक, गांव भुसासी। यहां की सावित्री ने बताया कि 10 बीघा खेती में चना और अरहर की फसल बोई थी। चना पूरी तरह बर्बाद हो गया है। उसे हमने काटा ही नहीं। अरहर भी लगभग बर्बाद ही है। उसमें फल नहीं लगा। थोड़ा बहुत लगा भी तो गुणवत्ता नहीं। सरकार ने चार हजार दो सौ रुपए दिए हैं। जबकि दस बीघों के अनाज का भाव गिरी हालत में साठ हज़्ाार होता। इस दस बीघा खेती में तीन भाइयों का हिस्सा है। तीन हिस्सा में चैदह-चैदह सौ इतने पैसे में तो एक एक कुन्टल गेहूं भी नहीं खरीद सकते हंै।