
बाराबंकी ज़िला के तबाराअनु, मोहम्मद, छोटा और सलसउददीन ने बताया के ढोलक तैयार करने के लिए आम की लकड़ी लाते हैं। फिर लकड़ी को गोल आकार देकर ढोलक तैयार होती है। ढोलक में सरेस, तार, रंग पालिश और बकरे का चमड़ा लगता हैं। एक दिन में 20 ढोलक बनती हैं। एक ढोलक 400 से 1000 रूपए तक बिकती है।
महोबा ज़िले में सावन का महीना लगते ही ढोलक की ढम-ढम घर-घर गूंजने लगती है। सावन के महीने में मन्दिरों में कही कीर्तन तो कही भजन होते हैं। इस समय लड़कियां और औरतें भी खेतों के काम से फुरसत हीेती हैं। जिस कारण सावन और कजरी जैसे गीतों का भरपूर आनन्द लेती हैं।
महोबा ज़िला आल्हा गीत के लिये प्रसिद्ध है। जिसे सावन के महीने में लोग दूर-दराज़ से गायकों को बुलाकर सुनते हैं। पर अगर अच्छी ढोलक नहीं है तो गाने का मज़ा किरकिरा हो जाता है। इसीलिये सावन का महीना लगते ही ढोलक बनाने और बेंचने वालों के डेरे पड़ जाते हैं।