मरीजों का उपचार कैसे बेहतर हो सकता है जब अस्पताल खुद ही बीमार हो! उत्तर प्रदेश के कई जिलों में ऐसे ही हालात देखने को मिलते हैं। यहाँ चिकित्सकों की कमी तो सालों चल रही है लेकिन उसकी सुनवाई करने को कोई मौजूद नहीं है।
सालों से सैंकड़ों मरीजों पर एक ही डॉक्टर है। इन विकट परिस्थतियों में मौसमी बीमारियों से लोगों में बुखार, उल्टी दस्त के साथ कई प्रकार की बीमारियां हो रही हैं। अस्पताल में डाक्टर के न होने से कई बार दुर्घटनाओं में घायल लोगों की जान पर भी बन आती है।
इन मुश्किल हालातों के बाद भी जिला अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिला अस्पताल से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर निशुल्क जांच और दवा वितरण की योजना थी, लेकिन सभी जगह योजनाएं कागजों में ही संचालित हो रही है। अस्पताल में न तो दवाएं हैं और न ही लिखने के लिए डाक्टर हैं।
स्वास्थ्य के नाम पर जिले भर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र पर पर्याप्त स्टाफ नहीं है। कही डाक्टर हैं, लेकिन आपातकालीन सेवाएं बुरी तरह प्रभावित रहती हैं।
गौरतलब हैं कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 108 समाजवादी एंबुलेंस सेवा की शुरुआत की थी। इस सेवा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति आपात स्थिति में टोल फ्री नंबर 108 पर फोन करके किसी भी समय 20 मिनट के अंदर एंबुलेंस सेवा प्राप्त कर सकता है। यह खास कर गर्भवती महिलाओं, दुर्घटना में घायल लोगों के लिए निःशुल्क आपातकालीन परिवहन सेवा थी।लेकिन इसका लाभ कहाँ और किसे मिला इसका कोई अता-पता नहीं! दूसरी ओर, 102 नेशनल एंबुलेंस सेवा के अन्तर्गत प्रदेश में 1972 एंबुलेंस संचालित की गईं थीं, जिसमें गर्भवती महिलाओं व नवजात शिशुओं को मदद दी जानी थी लेकिन यह सेवाएं मात्र कागजी हो कर रह गईं है। जिन क्षेत्रों में बाढ़ आई थी उन क्षेत्रों में अब बिमारियों का घर है और वहां के लोग एक अदद मदद के लिए भटक रहें हैं।
ये कैसी विडम्बना है कि पहले पानी के लिए लोग भटकते थे अब इलाज के लिए। क्या उत्तर-प्रदेश की जनता के भाग्य में यही लिखा है?
ठप स्वास्थ्य सेवाएं और भटकते लोग…
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