जिला झांसी, ब्लाक बबीना, गांव आरामशीन आज भी कछू आदमी अपने खानदानी पेशा को काम करत। चाहे फिर उन्हें बामे फायदा मिलबे चाहे नइ मिलबे।
कोऊ कोऊ को जो काम मजबूरी में करने परत तो कोऊ को करबे को शौक होत। कोऊ की एसी मजबूरी हो जात के अगर जो काम नइ करे तो का करे काय से अपने मोड़ी-मोड़ा पाल हे पढ़ा हे लिखा हे। कायके आज के जमाने में बिना पढ़े कछू नइ हो रओ। जो आदमी पढ़े लिखे होत बे तो अपनों कछु भी कर सकत लेकिन जो अनपढ़ हे बे कछु नइ कर सकत उन्हें फिर केवल बोई काम करने परत जो की उन ने अपने घरे करो होबे देखो होबे। फिर बई काम को सब खानदानी पेशा कन लगत काय के आदमी जो काम बचपन से देखे करे बो बोई काम अच्छे से कर सकत। और अगर आदमी पढो लिखो हुए तो बो अपने दूसरो काम भी करन लगत। एसे ही आरामशीन के चौकपुरा में जगदीश बढ़ई को परिवार लकड़ी के बेलन बनाबे को काम करत।
आदमी इनके पास लकड़िया लेके आत और बेलन बनवात। और कछू जने इन्हें अपने घरे भी लिबा ले जात बनबाबे के लाने।
सत्तर साल की रामप्यारी ने बताई के हम जो काम बचपन से कर रए और अब हमाय मोड़ी मोड़ा भी जोई काम करत अगर मजबूरी नइ होती और गरीबी तो हमाय मोड़ी मोड़ा भी पढ़ते लिखते और अपने कछू नौकरी करते। तो काय को उन्हें भी हमाय जेसो परेशान होने परतो न कोऊ के घरे जाने परतो बनाबे के लाने।
रिपोर्टर- सफीना