जिला चित्रकूट । सरकार सर्वशिक्षा अभियान चला रही है। लेकिन बच्चों के लिए खतरा बने जर्जर होते स्कूलों पर नज़र रखने में नाकाम रही है। या यों कहें कि नज़र रखना ही नहीं चाहती।
रामनगर गांव, नांदिन कुर्मियान। यहां के हीरामनी और बृजरानी कहती हैं कि यहां जूनियर स्कूलो की बिल्डि़ंग जर्जर है। वह बिल्डिंग कभी भी बच्चों के ऊपर गिर सकती है। बरसात में छत से पानी आता है। मजबूरी में पढ़ने भेजना पड़ता है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे शिवशंकर और अभिषेक कहते हैं कि हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं छत न गिर पड़े। क्या किसी दिन दुर्घटना होने के बाद स्कूल बनेगा?
जूनियर स्कूल की सहायक मास्टर नीलम देवी का कहना है कि स्कूल में कुल चैहत्तर बच्चे हैं। स्कूल बनवाने के लिए रामनगर बी.आर.सी. विभाग में अंतिम दरखास 27 जनवरी को दी थी।
कर्वी ब्लाक, गांव बैहार प्राथमिक स्कूल। यहां की मीना और लक्ष्मिनिया का कहना है कि स्कूल की बिल्डि़ंग कब गिर जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन मास्टर को इसकी कोई चिंता नहीं है। पढ़ने वाले बच्चे मालती और काजल कहते हैं कि हमको स्कूल में बैठकर पढ़ने में बहुत डर लगता है। पर क्या करें? अगर स्कूल नहीं जाते तो मां बाप भी कहते हैं कि पढ़ने जाओ नहीं तो मार खाओगे।
स्कूल के हेडमास्टर मानसिंह कहते हैं कि 1962 से स्कूल बना है कुल बच्चे एक सौ बयालिस है। तीन साल से स्कूल की बिल्डि़ंग जर्जर है इसलिए बच्चों को बाहर बैठाकर पढ़ाते हैं। 4 फरवरी को स्कूल बनवाने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग में दरखास दी थी।
मऊ, गांव करही, पुरवा जोरवारा। यहां के वीरेन्द्र और मिठाईलाल कहते हैं कि स्कूल जर्जर है। इसलिए बच्चों को पढ़ने नहीं भेजते हैं। हेडमास्टर सविता कहती हैं कि बेसिक शिक्षा विभाग में 2 जनवरी को लिखित स्कूल बनवाने के लिए दरखास दी थी। लेकिन सुनवाई नहीं हुई।
क्या है नियम
स्कूलों की निगरानी बेसिक और सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी करते हैं।
हर दस साल में मरम्मत का नियम है।
बजट स्कूल प्रबंधन कमेटी के खाते में जाता है।
बेसिक शिक्षा विभाग के बाबू सत्येन्द्र सिंह कहते हैं कि मार्च तक नया बजट आने वाला है उसमें कुछ स्कूलों की मरमम्त और जो स्कूल बिल्कुल जर्जर हैं, उनको नए सिरे से बनवाया जाएगा।