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जहानाबाद काण्डः 14 जनवरी की रात को क्या हुआ?

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जि़ला फतेहपुर, कस्बा जहानाबाद। 14 जनवरी को मकर संक्रांती के दिन फतेहपुर जि़ले के जहानाबाद शहर से ‘विशाल हिन्दू सम्मेलन’ के नाम पर धार्मिक जुलूस निकला। वे नारे लगा रहे थे और त्रिशूल लिए हुए थे। तीन डीजे भी इस जुलूस के साथ थे जिनके पास लाउड स्पीकर थे। मुस्लिम इलाकों से गुजर रही जुलूस में कहीं हिंसा भड़क उठी। जल्दी ही इसने सांप्रदायिक रंग ले लिया। मुस्लिमों की आठ दुकानें जला दी गईं। कई लोग घायल हुए। औरतों पर हमला हुआ। एक 14 साल के मुस्लिम लड़के की आंख चली गई। आज इन दंगों के दो हफ्ते बाद शहर में डर और सन्नाटा छाया है।
2014 में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार में खबरें आई थीं कि यूपी में बीजेपी के सत्ता मे आने के बादं 600 से ज़्यादा सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं। इसी तरह, बिहार में पिछले साल चुनाव से पहले सांप्रदायिक हिंसा में तीन गुना बढ़ोतरी हो गई थी। गौहत्या, लाउड स्पीकर, क्रिकेट मैच इन घटनाओं के कुछ कारण दिए गए थे। जहानाबाद में हुई घटना में भी इसी तरह के सांप्रदायिक बंटवारे की सारी निशानियां मौजूद हैं।
जहानाबाद के रहने वाले मोहम्मद रफीक उस दिन शहर में थे। उनके अनुसार शहर में इससे पहले कभी सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई। ‘‘धार्मिक जुलूसों की शुरुआत दो तीन साल पहले हुई। बीजेपी एम.एल.ए. विक्रम सिंह की इस घटना के शुरू होने में मुख्य भूमिका थी। जैसे ये जुलूस हमारे इलाके से निकला वो बोला – इन मुस्लिमों को मारो। जिससे हिंसा शुरू हो गई।’’ उस दिन जैसे-जैसे लाठियां, पत्थर और त्रिशूल राह चलतों पर फेंके गए, मुस्लिमों की दुकानें – जिनमें  मुर्गी, सब्ज़ी, और मोबाइल की दुकानें शामिल थीं – जला दी गईं। गाडि़यां को भी तोड़ दी गईं।
रफीक ने बताया कि दंगों के बाद देर रात तक पुलिस मुस्लिमों के घरों में घुसती रही। उसने रफीक और उसके कुछ पड़ोसियों को पकड़ लिया। ‘‘हम हिंसा के शिकार बने। हमारी दुकानों को आग लगा दी और अब हमें थाने में बंद किया जा रहा है’’।
जहानाबाद के दारागंज मोहल्ले में कल्लो चारपाई पर आराम कर रही है। उसके सर पर पट्टी बंधी है। वहां कि महिलाएं 14 जनवरी को हुई घटनाओं का खुलासा करती हैं। ‘‘वे त्रिशूल और पत्थर लेकर आए। जब हमने हिंसा होती देखी तो हम अपनी जान बचा कर भागे’’, धम्मो ने बताया। कल्लो की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी। उसके सिर पर चाकू के घाव हैं, उसे पीठ पर लाठियों से मारा गया। इस सब दंगे के बीच उनके घर भी लूट लिए गए। ‘‘वे हमारी बकरियां, ज़ेवर ले गए’’।
जहानाबाद पुलिस का कहना है कि उन्हें चार्जशीट तैयार करने में दो महीने लगेंगे। अभी उन्होंने 27 लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें से 15 हिन्दू और 12 मुस्लिम हैं।


शहर के मुस्लिमों का कहना है कि हर साल, विशाल हिन्दू सम्मेलन बड़ा होता जा रहा है। इस साल इसमें चालीस हज़ार लोग हो गए थे। वे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नारे लगा रहे थे। विश्व हिन्दू परिषद के नेता प्रवीण तोगडि़या भाषण देनेवालों में से एक थे।
सांप्रदायिक आधार पर विभाजित इस शहर में हमने पाया कि हिन्दू समुदाय से कोई भी बोलने को राज़ी नहीं था। हमने दुकानदारों और राम तलाई मंदिर के पंडित से बात की, जिन्होंने इस घटना की कोई भी जानकारी होने से इंकार कर दिया।
जब हमने फतेहपुर में भाजपा विद्यायक विक्रम सिंह से बात की तो उन्होंने दोष अल्पसंख्यक समुदाय पर जड़ दिया, ‘‘ये जुलूस 36 साल से चला आ रहा है। पिछले तीन साल से इसमें बहुत भीड़ जुटने लगी है। लोग जि़ले के बाहर से भी आते हैं। इस साल जुलूस पांच किलोमीटर लंबा था। सब कुछ शांतिपूर्वक हो गया था आखिर के 500 मीटर को छोड़कर। वहां लोग मौजूद थे – लम्बी दाढ़ीवाले आदमी और साथ में औरतें। वे जुलूस पर पत्थर फेंकने लगे। मुझे लगता है ये सब पहले से तय था। कौन इतनी सारी ईंटें जमा करके रखता है? सपा और बसपा का इससे कुछ लेना-देना है। वे चुनाव से पहले समुदायों को धर्म के आधार पर बांटना चाहते हैं।’’
सवाल ये है कि अगर हिन्दू समुदाय के सदस्य घायल हुए थे तो वे हैं कहां? संपत्ति का नुकसान सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय का ही क्यों हुआ है?