आय से अधिक संपत्ति के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को बरी कर दिया है। अम्मा के नाम से मशहूर जयललिता के वकील बी. कुमार ने बताया कि जयललिता पर आय से अधिक संपत्ति का आरोप गलत साबित हुआ है।
क्या था मामला
जयललिता जून 1991 में पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। उस समय उनकी संपत्ति करीब तीन करोड़ रुपए थी। पांच साल बाद यह संपत्ति करीब छाछठ करोड़ रुपए हो गई। 1996 के विधानसभा चुनावों में जयललिता और उनकी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम को राज्य की दूसरी पार्टी द्रमुक ने हरा दिया था। सत्ता में आते ही द्रमुक यानी जयललिता की विपक्षी पार्टी ने जयललिता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले के साथ कई और भ्रष्टाचार के मामले खोल दिए।
ऐसे लटकता चला गया मामला
1997 से लेकर 2000 तक यह मामला जैसे का तैसे पड़ा रहा। तमिलनाडु के सत्र न्यायाधीश ने कहा कि उनके पास मुकदमों का ढेर है। नए मुकदमों के लिए अतिरिक्त अदालतें बनवाई जाएं। उधर इस मामले में एक और आरोपी शशिकला ने सभी अंग्रेजी दस्तावेजों को तमिल भाषा में अनुववाद करने की मांग की। यह सब करते करते दो साल बीत गए। फिर गवाहों से जोड़ तोड़ चलती रही। 2001 में दोबारा सत्ता में दोबारा जयललिता आ गईं।
2003 में यह मुकदमा तमिलनाडु से बाहर कर्नाटक भेजा गया। फिर कुछ कानूनी अड़चनें आई। पांच साल तक यह मुकदमा अदालत के भीतर ही बंद रहा। 2006 में फिर विधानसभा चुनाव हुए और फिर जयललिता की विरोधी पार्टी सत्ता में आई। 2010 से फिर यह मुकदमा शुरू हुआ। 2011 में तीसरी बार जयललिता सत्ता में आईं। सत्रह साल बाद 2013 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने जान माइकल डी. कुन्हा नाम के एक वकील को विशेष न्यायाधीश नियुक्त किया। उन्होंने एक साल से कम समय में ही इस मुकदमे को निपटा दिया। 17 अक्टूबर 2014 को उन्हें चार साल की सजा और सौ करोड़ रुपए का जुर्माना सुनाया गया। लेकिन तीन हफ्ते जेल में रहने के बाद उनकी जमानत हो गई थी।