जापान के बायोलॉजिस्ट योशिनोरी ओशुमी को साल 2016 का चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है। यह पुरस्कार उन्हें ऑटोफैजी के क्षेत्र में नए अनुसंधान के लिए दिया गया है।
ऑटोफैगी एक शारीरिक प्रक्रिया है जो शरीर में कोशिकाओं के हो रहे क्षरण/नाश से निपटती है। ऑटोफैजी की सबसे पहली चर्चा 1974 में क्रिटियन डे ड्यूव ने की थी। ऑटोफैगी ‘कोशिका शरीर विज्ञान’ की एक मौलिक प्रक्रिया है जिसका मानव स्वास्थ्य एवं बीमारियों के लिए बड़ा निहितार्थ है। ‘ऑटोफैगी’ एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब होता है ‘खुद को खा जाना’। इस प्रक्रिया में कोशिकाएं खुद को नष्ट करती हैं और इसे बाधित करने पर तंत्रिका-तंत्र से जुड़ी बीमारियां जैसे मधुमेह और कैंसर भी हो सकता हैं।
इसी के साथ ही, भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरुस्कार ब्रिटेन के तीन वैज्ञानिक डेविड थूल्स, डंकन हाल्डेन और माइकल कोसरलत्ज को मिलेगा। नोबेल ज्यूरी ने कहा कि इन तीनों ही साइंटिस्ट्स ने किसी भी मैटर, पदार्थ या द्रव्य के बाहरी गुणों या अवस्थाओं पर काम करते रहे हैं। यह तीनों प्रोफेसर अमेरिकी यूनिवर्सिटीज का हिस्सा रहे हैं।
अपने काम के माध्यम से वे इस बात को साबित करते हैं कि कुछ पदार्थों में क्यों सुपर कंडक्टिविटी जैसी अनापेक्षित इलेक्ट्रीकल प्रॉपर्टी होती है। इस काम की वजह से अब क्वांटम कंप्यूटर्स का काम आसान होने की उम्मीद है।
82 साल के थूल्स यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन से रिटायर हो चुके हैं। डंकन हाल्डेन 65 साल के हैं और फिलहाल प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। जबकि 73 साल के माइकल कोस्टरलिट्ज ब्राउन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। तीनों साइंटिस्ट्स को कुल मिलाकर 9 लाख 31 हजार डॉलर मिलेंगे। इससे पहले, साल 2015 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार को तीन वैज्ञानिकों विलियम सी कैम्पबेल, सतोषी ओमुरा और योतो तु ने साझा किया था। तीनों वैज्ञानिकों को मलेरिया और ट्रॉपिकल बीमारियों का उपचार विकसित करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। मेडिसिन की श्रेणी में 1905 में शुरू हुए नोबेल पुरस्कार का यह 107वां पुरस्कार है।