जिला मुज़़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश। मुज़़फ्फरनगर दंगों का सामना करने वाले लोग अब भी कैंपों में रह रहे हैं। प्रषासन उन्हें हटने का आदेश दे चुका है, पर लोग गांवों में नहीं जाना चाहते।
मुज़़फ्फरनगर के शाहपुर गांव में कैंप में करीब 554 परिवार रह रहे हैं। इनमें से अधिकतर लोग काकड़ और कुटबा गांव के हैं। कुछ को मुआवजा मिला है, कुछ इंतजार में हैं। यहां पर रह रहे नौषाद ने बताया कि उन्होंने 8 सितंबर 2013 को अपना घर छोड़ दिया था। कड़ाके की सर्दी में घर याद आता है। उनका पक्का मकान है। लेकिन वो घर कभी नहीं जाएंगे। कुटबा गांव की वसीला का परिवार भी यहीं है। दंगे में उनके देवर, ससुर समेत परिवार के आठ लोग मारे गए। ’घर के आदमियों को हमारे सामने मार दिया गया। भला वहां कैसे जी पाएंगे?’
काकड़ गांव के अल्लाबंदा और उनके चार भाइयों में से किसी को मुआवजा नहीं मिला। अल्लाबंदा ने बताया कि सरकार ने राषन बंद कर दिया है। ’कमेटी के लोग कब तक खिलाएंगे? लेकिन जो भी हो, गांव नहीं जाएंगे। सरकार के लोग आकर कहते हैं, हमारी जि़म्मेदारी पर गांव चले जाओ। पर दंगों के समय ये लोग कहां थे?’ मुज़फ्फरनगर के जिला अधिकारी कौषल राज शर्मा के अनुसार सभी जायज लोगों को हर्जाना दिया जा चुका है। 267 लोगों की सूची में से 205 लोगों को हर्जाना मिल चुका है। बाकियों को भी मिल जाएगा। लेकिन इनके अलावा 287 लोगों का क्या होगा? यह पूछने पर उनका कहना था, ये लोग यहां जानबूझकर पड़े हैं।
चार महीने बीते अब तक सबको नहीं मिला मुआवज़ा
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