कहते हैं कि आज का जमाना नारीवाद की तीसरी लहर से होकर गुजर रहा है। पहली दो लहरों में महिलाओं के मताधिकार से लेकर यौन शोषण पर सख्त कानून की मांग तक नारीवाद ने कई लड़ाईयां लड़ी हैं। लेकिन नारीवाद या महिलावाद जैसे शब्दों का वास्तव में क्या अर्थ है? ग्रामीण महिला और शहरी महिला की नारीवादी सोच में क्या-क्या अंतर है? इस विचारधारा की सही परिभाषा जानने के लिए हम बात करते हैं निरंतर संस्था की कार्यकर्ता और खबर लहरिया की कुछ पत्रकारों सेः
मीरा देवी, पत्रकार, बांदा- नारीवाद का मतलब मेरे लिए महिलाओं की उन समस्याओं से है जो उन्हें शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से परेशान करती हैं। इस शब्द को सुनकर मैं अपने आप में एक शक्ति का संचार होता महसूस करती हूं।
गांव में अभी भी लोगों की वही पुरानी सोच है और पुरुषों की सत्ता कायम है। कुछ महिलाएं अन्याय के खिलाफ आवाज तो उठाती है लेकिन ज्यादातर महिलाओं को आज भी शोषण झेलना पड़ रहा है। यदि वह कुछ करने की सोचती भी हैं तो उन्हें अपमानित किया जाता है।
अपेक्षा वोरा, निरंतर संस्था, दिल्ली- नारीवाद को महसूस करना अलग बात है और उसे जमीनी तौर पर जीना अलग। महिलाओं के मुद्दे गांवों में निम्न तरीके से देखे जाते हैं और शहरों में सामान्य तरीके से। यह केवल लिंगात्मक रूप से ही नहीं बल्कि जातिगत वजहों से भी देखा जाता है। मेरे हिसाब से महिलाओं को मौके देने चाहिए, जिससे वह अपने लिए और सभी के लिए आदर्श बन सकें। गांव और शहर की महिलाओं में सिर्फ इतना ही अंतर है कि कुछ पढ़ लिख कर शोषित महसूस करती हैं और कुछ दबे-कुचले जाने से। लेकिन अगर देखा जाए तो गांव और शहर दोनों की महिलाएं आगे बढ़ना चाहती हैं।
मीरा जाटव, पत्रकार, चित्रकूट- मेरे लिए नारीवाद का मतलब स्वतंत्रता से जीना है। एक बात कहना चाहूंगी कि इस शब्द को गांव में कोई नहीं जानता। लेकिन इस शब्द का गांव से गहरा संबंध है। जातिवाद और लिंगात्मक रूप से होने वाले भेदभाव के कारण ही यह नारीवाद शब्द पैदा हुआ। जिस तरह का अत्याचार निचली जाति की महिलाओं के साथ होता है वैसा किसी पुरुष के साथ भी नहीं होता।