ममता जैतली राजस्थान में कई सालों से सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे लम्बे समय से नारीवादी आन्दोलन का हिस्सा रही हैं। उन्होंने 1998 में विविधा न्यूज़ फीचर्स की शुरूआत की थी जो महिलाओं पर हो रही हिंसा, और राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर फोकस करती है। वे राजस्थान में ‘उजाला छड़ी‘ नाम का अखबार प्रकाशित करती हैं जो विकास और अन्य स्थानीय मुद्दों पर खबरें छापता है।
पंचायती राज संस्थाओं में महिला जन प्रतिनिधियों के काम को हमेशा अनदेखा किया जाता रहा है। कभी आरोप लगता है कि वे अपने बूते राजकाज चला ही नहीं सकतीं तो कभी पूर्व पंच सरपंच उन्हें काम ही नहीं करने देते। कभी कहते हैं अनपढ़ औरतें क्या राज करेंगी। ये सब बातें पूरी तरह सच नहीं हैं। अनेक महिला सरपंचों ने तमाम मुश्किलों का बहादुरी से सामना किया है। ऐसी ही एक दलित महिला सरपंच हैं, अर्चना जाटव। वे दौसा जिले की महवा पंचायत समिति की सांथा ग्राम पंचायत की सरपंच रही हंै।
अर्चना ने 2010-2015 के बीच सरपंच रहीं। उनके गांव में पूर्व सरपंच मीणा था। मीणाओं के सात सौ घर थे। अनुसूचित जातियों के तीन सौ। मीणा सरपंच दारू पीकर जूता मारता था। औरतों का शाम 7 बजे के बाद घर से निकलना मुश्किल था। औरतों ने अर्चना से कहा दारू के ठेके बंद करवा दो तो तुम्हें वोट देंगे। जीत के बाद अर्चना की पहली लड़ाई पूर्व सरपंच से हुई। उसने सचिव को भी पट्टी पढ़ा दी थी। अर्चना बताती हैं कि मैंने सचिव को उसी की भाषा में समझाया।
मीणा जाति बहुल पंचायत में एक अनुसूचित जाति की महिला का काम करना बड़ा मुश्किल था। पूर्व सरपंच का दबदबा बहुत था। पूर्व सरपंच से जब अर्चना पंचायत के सचिव के साथ चार्ज लेने गईं तो पूर्व सरपंच ने गाली गलौच करते हुए सचिव को ही थप्पड़ मार दिया था। अर्चना के साथ भी गाली गलौच की। मगर उसने पूर्व सरपंच के सामने झुकने की जगह उसने अपना काम बेहतर तरह से किया। अर्चना और पूर्व सरपंच का झगड़ा बहुत बढ़ गया। इस घटना से हालांकि अर्चना के घर में जरूर तनाव हो गया। अर्चना के ससुर को लगता था कि मीणा समुदाय ताकतवर है क्योंकि पंचायत में उनके सात सौ घर हैं जबकि अनुसूचित जाति के सिर्फ तीन सौ घर ही हैं। इसीलिए ससुर ने कहा कि अर्चना सरपंच पद से इस्तीफा दे दें। अर्चना ने बहुत शांति से ससुर को समझाया और कहा कि ऐसे लोगों को मैं सुधार सकती हूं। इसलिए उनको घबराने की जरूरत नहीं है। आखिरकार पूर्व सरपंच को ही अर्चना से माफी मांगनी पड़ी।