दीपावली के दूसरे दिन गोबर्धन पूजा की जाती है। जिस घर में जानवर होते हैं उस घर के लोग दीपावली के दूसरे दिन गोबर से कण्डे नहीं गोबर्धन बनाते है। उसको रूई से सजाते है। साथ ही तिल के फल से आंखे बनाई जाती है। रूई से बाल बनाये जाते है। काजल और सिन्दूर, बिन्दी लगाकर सजाया जाता है। शाम सवेरे खाना रखकर पूजा की जाती है। यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
साथ ही दीवारी नृत्य भी किया जाता है। इस नृत्य में पुरूष रंगे डण्डे एक दूसरे से लड़ाते है। ढोल नगाड़े के साथ यह खेल देखते ही बनता है।
गोबर्धन पूजा और नाच
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