गायक सोनू निगम धर्म को लेकर अपने ट्वीट्स की वजह से विवादों में आ गए हैं। उन्होंने 17 अप्रैल सुबह एक के बाद एक चार ट्वीट किए जिसमें उन्होंने मस्जिदों में रोज सुबह होने वाले आज़ान को शोर नाम करार दिया, और कहा कि आज़ान की वजह से रोज उनकी नींद खराब होती है। हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया है कि उन्हें मंदिरों और गुरुद्वारों में बजने वाले तेज आवाज गाने भी पसंद नहीं है, पर ये बात उन्होंने बाद में ट्विटर पर जवाबदेही की तरह से दी। सोनू ने लिखा कि अपने धर्म को मनवाने के लिए ही इन मंदिरों, मस्जिदों के संचालक ऐसा करते हैं, और ऐसे रिवाजों को ‘गुंडागर्दी’ करार किया।
कुछ लोग उनका समर्थन कर रहे हैं, और वहीं कुछ और उनके खुद के गाए भजनों को भी शोर बता रहे हैं। वहीं कुछ ने इसे खबर में आने का एक जरिया बताया है।
बात जो भी हो, पर उनके इस व्यवहार पर प्रश्न अनेक उठते हैं।
क्या इस तरह के संवेदनशील कमेंट करना अनिवार्य है? देश में पहले ही धर्म को लेकर इतना वाद विवाद, इतने लड़ाई झगडे छिड़ते हैं, क्या ज़रूरी है कि हम इस आग में और तेल डाले?
अगर बात कई धर्मों की थी, तो उनका ट्वीट एक ही धर्म पर क्यू केन्द्रित रहा?
क्या वे खुद ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेना छोड़ देंगे, जिनमे भगवान् के नाम पर लाउड स्पीकर पर सारी रात जगराते होते हैं?
क्या अपनी प्रसिद्धता के भार को ऐसे मुद्दों के पीछे डालना चाहिए, या फिर उन्हें किसी और समाज सुधार कार्य में लगाना चाहिए?
और अगर समाज सुधार कार्य में रूचि ना भी हो, तो कम से कम अपनी तरफ से कुछ ज़िम्मेदारी बरतना ज़रूरी नहीं है?
क्या किसी के धर्म के रिवाजों या प्रथाओ को ‘गुंडागर्दी’ नाम देना ठीक है?
पर शायद सबसे ज़रूरी प्रश्न ये है कि जहां डर और असुरक्षा के माहौल में अल्पसंख्यक ख़तरा महसूस कर रहे हैं, वहीँ उनके धर्म पर कोई बड़ी हस्ति टिप्पणी करे तो क्या ये उचित है?