ममता योजना के मुकाबले जन्मपूर्व सेवाएं प्राप्त करने की संभावनाओं में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है। जिनमें महिलाओं की पूरे शरीर की जांच, रक्त परीक्षण, शिशु की स्थिति और स्वास्थ्य के बारे में जानकारी आदि शामिल है।
यह सेवाएं 5000 रूपये के एक सशर्त नकदी हस्तांतरण कार्यक्रम के द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं जो गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को किश्तों में देने की सुविधा के साथ मुहैया कराई जाती हैं।
2011 में शुरू की गई योजना के लाभार्थियों में गर्भावस्था और बच्चा जनने के बाद वाली महिलाओं को शामिल किया जाता है। इसका पंजीकरण गर्भधारण के दौरान ही किया जाता है।
एक अध्ययन में कहा गया है कि महिलाओं में एनीमिया को रोकने के लिए लोहे और फोलिक एसिड की गोलियां प्राप्त करने की संभावना में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
पोषण अध्ययन के अनुसार, तीन जिलों के 1,161 घरों में 60% महिलाओं ने इस योजना में पंजीकरण करवाया और 90% मामलों में मां को आर्थिक सहायता के लिए पैसे मिले।
यह योजना चार किश्तों में धन का भुगतान करती है– पहले तिमाही के बाद पहले और शेष तीन, प्रसव के छह और नौ महीने बाद।
ओडिशा में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में 56 अंकों की कमी आई है. 2000 के बाद से हर 1000 जीवित जन्मों में एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत हुई है। आईएमआर ओडिशा में 40 से गिरकर राष्ट्रीय औसत 41 के मुकाबले कम हो गया है।
लिंग और विकास के बारे में, विश्व बैंक के अध्ययन के अनुसार, बच्चे के पोषण का स्तर सीधे मां की आय और भोजन की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। इसके विपरीत, पैतृक आय में वृद्धि से ऐसा कोई प्रभाव नहीं देखा जाता है।
विश्व बैंक के अध्ययन में कहा गया है कि महिलाओं की अपेक्षा पारिवारिक जरूरतों और बाल पोषण पर खर्च करने के लिए महिलाएं अधिक प्रयासरत रहती है।
ममता योजना ने घरों की खाद्य सुरक्षा पर सकारात्मक रूप से असर छोड़ा है जिससे बच्चे के स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित जरूरतों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड