सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय योजा के तहत आदमियन खे जांबकार्ड तो बनवा दये हें। जीमें आदमियन खे सौ दिन को रोजगार ओर समय से रुपइया मिले? एसो नियम हे। पे सरकार की जा योजना को लाभ आम आदमी तक कित्तो पोहोचत हे। जा अधिकारी पलट के नईं देखत हे?
ई समस्या को ताजा उदहारण-कबरई ब्लाक के रिवई सुनैचा गांव में 2015-6 में जांबकार्ड बन गये हते, पे अगर काम देखो जाये तो दसऊ दिन नई मिलो हे। एक केती सरकार जनता खा उजागर करत हे-जघा दिवालन में नारा लिखे रहत हे हर हाथ को को काम मिलेगा, काम नई तो दाम मिलेगा। मतलब अगर गांव के आदमी खा जांबकार्ड में काम न मिलहे सौ दिन को तो ऊखे बिना काम के रुपइया मिलहे? पे काम ओर दाम तो दूर की बात हे की बात हे, आदमी दिन भर धूप मे आपन खून पशीना एक करके काम करत हे, ऊखो रुपइया तो मजदूरन खा मिलत नईयां तो बिना काम को रुपइया किते से मिलहे। चरखारी ब्लाक के सुदामापुरी पनवाड़ी ब्लाक के गांव गगौरा को मजरा खैराया के मजदूरन को खन्ती को रुपइया दो महिना के बाद भी नई मिलो हे।
सोचे वाली बात जा हे की का सरकार ने जांवकार्ड बना के घरन में धरे खे लाने दये हे। अगर जांबकार्ड बनाये हे सौ दिन को काम देय को नियम करो हे तो सरकार पलट क काय नईं देखत आय, कि आदमियन खा काम मिलत हे की नई? जभे की एक गांव पांच-पांच सौ जांबकार्ड बने हे। पे काम सौ सौ आदमियन खा नई मिलत हे। जांबकार्ड बने के बाद भी जनता बेरोजगार बेठी रहत हे जा फिर पलायन कर जात हे। काय से गंाव मे मनरेगा के अलावा ओर कोनऊ काम नईं रहत हे। अगर देखो जाये तो जांबकार्ड योजना खोखली नजर आउत हे।