केन्द्र सरकार ने मजदूरन के पलायन ओर भुखमरी रोके लाने महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना लागू करी हती। जोन खोखली साबित नजर आउत हे। काय से सरकार ने मनरेगा के तहत करोड़ो को बजट हर साल खर्च होत हे, पे अगर हकीकत जानी जाये तो कछू ओर हे।
ताजा उदाहरण-चरखारी ब्लाक के लुहारी गांव के मजरा मे छेदामऊ मे आदमियन के 2008 के जाबकार्ड बने धरे हे। तीन सौ आदमी जाबकार्ड लये काम के लाने घूमत हे। आठ साल गुजरे के बाद भी एक दिन काम नई मिलो हे। अगर कोनऊ गांव मे मजदूरन खा काम मिलत भी हे तो मजदूरी के लाने पांच से छह महीना बैंक ओर अधिकारियन के चक्कर काटत हे। गांव मे दस प्रतिशत काम दओ जात हे जभे की नब्बे प्रतिशत आदमी सूखा के कारन भुखमरी के कगार मे आ गओ हे। जभे की केन्द्र सरकार अपनी योजना को बखान दिवालन पे लिखा के प्रचार कारत हे।
हर हाथ को काम मिलेगा, काम नहीं तो दाम मिलेगा।
सवाल जा उठत हे की काम करें को रूपइया तो समय से मिलत नइयां तो बिना काम को रूपइया कोन देहे। आखिर हर साल को करोड़न मे खर्चा भओ बजट किते जात हे। का सरकार जा योजना अपने कर्मचारियन के लाने भेजत हे। जोन काम भी नई मिलत ओर बजट भी खर्चा हो जात हे। आखिर सरकार आपन बनाई भई योजना खा पलट के काय नई देखत हे?
खोखली केन्द्र सरकार की योजना
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