फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह को लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड टाईम्स आफ इंडिया स्पोर्ट अवार्ड कार्यक्रम में दिया गया। कहा जाता है कि जब मिल्खा सिंह दौड़ते थे तो लगता था कि वह उड़ रहे हैं। इसी वजह से उन्हें पूरी दुनिया में फ्लाइंग सिख यानी उड़ने वाले सिख के रूप में जाना जाता है। मिल्खा सिंह ने दुनिया के कई धुरंधर धावकों को हराकर पूरी दुनिया में भारत की एक पहचान बनाई थी।
हर साल टाईम्स ग्रुप आनलाईन वोटिंग कर खेल की ऐसी हस्तियों को यह अवार्ड देता है, जिन्होंने किसी खास खेल में भारत की पहचान बनाई हो। मिल्खा सिंह ने इस मौके पर अपनी एक खास इच्छा जाहिर की। उन्होंने कहा कि मैं 1960 में रोम ओलंपिक की चार सौ मीटर की दौड़ हार गया था। इस हार का अफसोस मुझे आज भी है क्योंकि इस प्रतियोगिता में हार जीत का अंतर कुछ सेकेंड का था। उनके अनुसार अगर वह अपने पीछे दौड़ रहे खिलाडि़यों को देखने के लिए पीछे न पलटते तो वह जीत जाते। मिल्खा सिंह के ऊपर एक फिल्म भी बनी है, भाग मिल्खा भाग। जिसमें उनकी जिंदगी और खेल को जानदार ढंग से दिखाया गया है। हार का यह किस्सा फिल्म के केंद्र में रखा गया है। इस हार के बादऽभारत को किसी भी ओलंपिक में अब तक दौड़ की इस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल नहीं मिला है।
उनकी इच्छा है कि उनकी मौत से पहले कोई भारतीय खिलाड़ी गोल्ड मैडल जीते। उन्होंने कहा मेरी हार के बाद तीन भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के बेहद करीब पहुंचे। मगर जीते नहीं। 1964 में गुरबचन सिंह रंधावा, 1967 में श्रीराम सिंह और 1984 में पी.टी. ऊषा।
खेल कूद – ‘मेरे मरने से पहले कोई लाए गोल्ड मैडल’
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