धान की फसल काटने के बाद खेतों में शेष पराली को जलाने से होने वाले प्रदूषण को देखते हुए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण(एनजीटी) पहले ही पंजाब के साथ ही हरियाणा व उत्तर प्रदेश में इस पर रोक लगाने का आदेश दे चुका
है। जिसके बाद एनजीटी ने पंजाब सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे किसानों से बातचीत करके उन्हें जरूरी मदद उपलब्ध कराएं ताकि पराली को खेतों में जलाने संबंधी रोक प्रभावी ढंग से लागू हो सके। पराली को खेतों से काटने के लिए जरूरी मशीन व अन्य उपकरणों की व्यवस्था के लिए सरकार की ओर से किसानों को मदद दी जानी चाहिए। इस सुनवाई के दौरान काफी संख्या में किसान भी पहुंचे थे।
किसानों के दावे के अनुसार हर साल लगभग 3.5 करोड़ टन पराली हरियाणा व पंजाब में खेतों में जलाई जाती है। इसमें से दो करोड़ टन अकेले पंजाब में पराली होती है। खेतों से निकलने वाली इतनी भारी मात्रा में पराली को किस रूप में उपयोग में लाया जाए यह एक अलग समस्या है।
उल्लेखनीय है कि जाड़े के दिनों में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण तथा पर्यावरण की भारी क्षति को देखते हुए
एनजीटी ने नवंबर 2015 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। राज्य सरकारों की ओर से प्रभावी कदम नहीं उठाये जाने के लिए पराली जलाने पर अभी भी अंकुश नहीं लग पाया है।
किसान पराली को काटकर खेतों से हटाने की प्रक्रिया खर्चीली होने के कारण प्रतिबंध के बावजूद उसे वहीं जला देते हैं। यद्यपि एनटीपीसी ने किसानों से पराली को खरीदकर उसे ईंधन के रूप में उपयोग करने का प्रस्ताव दिया है लेकिन उसे काटकर थर्मल प्लांटों तक पहुंचाने की प्रक्रिया खर्चीली होने के कारण किसानों की ओर से मुआवजे की मांग की जा रही है। एनजीटी ने भी इस मामले में राज्य सरकारों को मदद के लिए कदम उठाने को कहा है।