बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध लोकनृत्य है राई। कोई खुशी का मौका हो या फिर कोई त्यौहार, यहां कई गांवों में आज भी यह नृत्य होता है। लगातार खत्म हो रही इस लोक कला को जिन्दा रखने की कोशिश में लगी हैं। मानिकपुर की संजो देवी अपनी बुलंद आवाज़ में राई गाती हंै और ज़ोरदार ताल ढोलक बजाती हैं।
संजो देवी ने बताया कि मनोरंजन के नए नए साधन आ जाने से लोग इसे भूलते जा रहे हैं। इसे लोगों तक पहुंचाने के प्रयास भी सरकार नहीं करती है। मेरी टीम को आज तक टीवी में नृत्य दिखाने का मौका नहीं मिला।
टीम में शामिल बूटी देवी तीस सालों से राई नृत्य कर रही हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली, लखनऊ समेत अलग जिलों में उन्होंने नृत्य किया है। टीम में बीस लोग होते हैं। उन्होंने कहा संजो को उन्होंने राई गाते देखा था। बस उनका भी मन करने लगा कि वो भी इस कला में जुड़ जाएं और नाचे गाएं।
लोकनृत्य राई के लिए दो टीमें बनती हैं। एक टीम गाना शुरू करती है। दूसरी उनके गाने का जवाब देती है। यानी दोनों टीमें गाने की शैली में किसी मजे़दार मुद्दे को लेकर एक दूसरे के साथ सवाल जवाब करती हैं। मुकाबला कई कई दिनों तक भी चलता है।