क्या हर व्यक्ति का ये अधिकार नहीं की उसे तीन वक्त का खाना मिले? आज इतना उत्पादन है कि दुनिया का हर व्यक्ति अपना
पेट भर सकता है। फिर भी भारत के पचास प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। जब दुनिया का हर जानवर अपनी भूख मिटा सकता
है तो हम इंसान ही इस समस्या से क्यों जूझ रहे हैं? समस्या का समाधान निकालने के लिए बारह साल पहले शुरू हुआ भारत का
खाद्य सुरक्षा अधिकार आन्दोलन। इस अभियान में 2500 व्यक्तियों और संस्थाओं का समूह है जो भारत में खाद्य सुरक्षा अधिकार के
लिए अपने अपने राज्यों में खाने से सम्बंधित योजनाओं पर कड़ी नज़र रख रहा है जैसे पी.डी.एस. यानी राष्ट्रीय सार्वजनिक वितरण
प्रणाली, आंगनवाड़ी और मिड डे मील। खबर लहरिया की बात हुई सुप्रीम कोर्ट के आयुक्तों के प्रधान सलाहकार बिराज पटनायक
भारत में खाद्य सुरक्षा अधिकार
आन्दोलन की क्या जरूरत है? सरकारी
योजनाएं तो हर राज्य में हैं। भारत में
लगभग पचास प्रतिशत बच्चे कुपोषण का
शिकार हैं। दो तिहाई औरतें खून की कमी
से पीडि़त है। एक तिहाई लोगों का वजन
सामान्य से कम है। और अनुसूचित जातियों
और जनजातियों की तो और भी बुरी
हालत है। इसलिए खाद्य सुरक्षा विधेयक
बहुत ज़रूरी है।
क्या इस आन्दोलन से कुछ बदलाव
आया है? छत्तीसगढ़, तमिल नाडु, उड़ीसा
और केरल जैसे कई राज्यों में पी.डी.एसमें
पिछले कुछ सालों में बहुत बदलाव
आया है। इन राज्यों में पी.डी.एस. सभी के
लिए है, यहां इसके लागू करने की व्यवस्था
पूरी तरह से चल रही है। तमिल नाडु में
चावल मुफ्त है और छत्तीसगढ़ में २
रूपये किलो है। एस एम एस से सूचना
देना, टेलीफोन सहायता सेवा और राशन
की दुकानों का निजीकरण समाप्त करके
महिला स्वयं सहायता समूहों और पंचायत
आदि को सौंप दिया गया है। इन राज्यों
में लोगों को अपने राशन का पूरा कोटा
मिलता है। अगर छत्तीसगढ़ में पी.डी.एससफलतापूर्वक
चल सकता है तो उत्तर
प्रदेश और बिहार में भी चल सकता है।
ज़रुरत है तो सिर्फ राजनीतिक इच्छा की।
नए खाद्य सुरक्षा विधेयक में औरतों के
लिए क्या ज़रूरी बातें हैं? सरकारी विधेयक में दो महत्त्वपूर्ण चीजें हैं जिनसे औरतों
की जिंदगी पर असर पड़ेगा। बच्चे को दूध्
पिला रही औरतों और गर्भवती औरतों के
लिए 6000 रुपये (६ महीने तक 1000
रुपये प्रति महीना) और औरतों को व्यक्तिगत
अधिकार देंगे जिससे औरतों की अन्न तक
पहंुच बने, चाहे वे शादीशुदा हांे या न हों।
राशन कार्ड औरतों के नाम होंगे। पी.डी.
एस. में निजी व्यापारियों की तुलना में
औरतों के स्वयं सहायता समूहों को
प्राथमिकता दी जाएगी। पी.डी.एस. का क्षेत्र
बढ़कर ग्रामीण इलाकों में 67 प्रतिशत और
शहरी इलाकों में 50 प्रतिशत होगा। अन्न
की कमी का औरतों पर सबसे ज्यादा असर
पड़ता है इसलिए आशा है कि औरतों की
खाद्य सुरक्षा से जुड़ी जरूरतें पूरी होंगी।