बिहार। बिहार में हर सौ में से सत्तर ट्यूबवेल खराब पड़े हैं। यहां फिलहाल दस हज़ार के करीब ट्यूबवेल हैं जिनमें से लगभग तीन हज़ार ट्यूबवेल काम ही नहीं कर रहे हैं। कई ट्यूबवेल तकनीकी खराबी की वजह से नहीं चल रहे हैं तो कई ट्रांसफार्मर, तार या दूसरी छोटी मोटी खराबियों की वजह से बंद पड़े हैं। ग्यारह सौ ऐसे ट्यूबवेल हैं जिनका दोबारा काम करना संभव ही पहीं है।
किसानों को सिंचाई की सुविधा मिले इसके लिए राज्य सरकार ने आठ घंटे लगातार बिजली देने का फैसला लिया है, मगर इन हालातों में सरकार का ये आदेश पूरा होना मुश्किल लग रहा है। 27 जुलाई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों के साथ बैठक में बंद ट्यूबवेलों को फौरन चालू करने के लिए कहा। लेकिन खराब ट्यूबवेल की संख्या इतनी ज्यादा है कि इन्हें धान रोपने तक ठीक करना लगभग नामुमकिन है।
सीतामढ़ी और शिवहर पर नज़र
सीतामढ़ी जिला के सोनबरसा प्रखण्ड परिसर में पी.एच.इ.डी. विभाग में दो चापाकल है जिसमें एक खराब है दूसरा गंदगी से भरा है।
रीगा प्रखण्ड के गांव मेंहदी नगर प्राथमिक विद्यालय में चापाकल न होने से मध्याहन भोजन बनाने में रसोइयों, पानी पीनें के लिए बच्चों एंव शिक्षकों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है।
डुमरा में डी.एम. कोठी के बगल में चापाकल दो साल से खराब पड़ा है।
जिला कार्यापालक अभियंता सुद्धेष्वर प्रसाद का कहना है कि चापाकल मरम्मतीकरण के लिए मिस्त्रियों की कमी हैं।
जिला षिवहर, प्रखण्ड तरियानी, गांव फतहपुर, वार्ड नम्बर दस में दो साल से चापाकल खराब है। इस चापाकल से लगभग पन्द्रह घर के लोग पानी भरते थे। जूनियर इंजीनियर जितेन्द्र कुमार का कहना है कि जिले में कुल नौ सौ अड़तालीस चापाकल खराब पड़े हंै लेकिन मरम्मत के लिए कोई बजट नहीं मिल रहा है।